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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफीडेविट दाखिल करने से पहले कई मंत्रालयों और राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों से इस मामले में परामर्श किया।

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केंद्र सरकार ने जिलेवार अल्पसंख्यकों की पहचान के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना जवाब दाखिल किया। केंद्र ने कहा कि जिले में अल्पसंख्यक का बंटबारा कानूनी स्तर पर नहीं किया जा सकता, यह राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफीडेविट दाखिल करने से पहले कई मंत्रालयों और राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों से इस मामले में परामर्श किया।

24 राज्य सरकारों और 6 केंद्र शासित ने भेजे सुझाव
केंद्र सरकार के जवाब में कहा कि 24 राज्य सरकारों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने सुझाव भेजे हैं। हलफनामे के अनुसार, ज्यादातर राज्य अल्पसंख्यक मंत्रालय के साथ हुई बैठकों में अभी चल रही व्यवस्था के पक्ष में खड़े दिखे, जिसके तहत अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा राज्य में उनकी स्थिति के अनुसार तय की जाती है। हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र इस मुद्दे पर केंद्र के साथ दिखे, जिसमें अल्पसंख्यकों का दर्जा राज्य की स्थिति के अनुसार करने की बात कही गई। ये बैठक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आयोजित की गई। बता दें कि याचिकाकर्ता कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषिक करने की मांग कर रहे हैं।

शिक्षा मंत्रालय और गृहमंत्रालय ने भी दिए सुझाव
शिक्षा मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट के TMA टीएमए पई फाउंडेशन में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान कानूनी नहीं है क्योंकि भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यक राज्य की जनसांख्यिकी के संदर्भ में ही निर्धारित किया जा सकता है क्योंकि यह जगह-जगह अलग-अलग होता है। वहीं गृह मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे पर कोई अलग से टिप्पणी नहीं करनी है। इस तरह के मामलों में कानून बनाने के लिए संसद या राज्य विधानमंडल न्याय पालिका से परामर्श करनी चाहिए।

ज्यादातर राज्य केंद्र के साथ खड़े दिखे
इस मामले में 10 राज्यों ने वर्तमान में चल रही व्यवस्था को प्राथमिकता ही। इसमें नागालैंड, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, केरल और मध्य प्रदेश शामिल हैं। वहीं आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड, असम, मणिपुर और सिक्किम ने कहा कि राज्य के धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक पहचान के लिए एक इकाई के रूप में माना जाना चाहिए। वहीं ओडिशा ने वर्तमान में अधिसूचित अल्पसंख्यकों में से किसी को हटाने या किसी अन्य समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की विरोध किया है।

6 राज्यों ने नहीं दिए सुझाव
छत्तीसगढ़ और हरियाणा भी केंद्र के साथ दिखे। वहीं उत्तर प्रदेश ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में कोई फैसला लेती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। मेघालय ने कोई टिप्पणी नहीं की। दादर और नगर हवेली और दमन और दीव, चंडीगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशों भी इस मामले में केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखे। केवल हिमाचल प्रदेश ने कहा कि राज्य को इस तरह के मामले में एक इकाई के रूप में माना जाना चाहिए। वहीं केंद्र सरकार को अभी तक 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जवाब नहीं दिया है। इनमें अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लक्षद्वीप, राजस्थान, तेलंगाना और झारखंड शामिल हैं।

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