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यदि क्लास का हर बच्चा अपनी धार्मिक पुस्तकों और रिवाजों का हवाला देते हुए ड्रेस पहनने की बात करेगा तो फिर कोई नियम ही नहीं रह जाएगा।

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कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी को लेकर बीते 8 दिनों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है और अब बुधवार को भी इस पर बहस होगी। मंगलवार को कर्नाटक सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कई तर्क दिए। यहां तक कि उन्होंने ईरान में हिजाब के खिलाफ चल रहे महिलाओं के आंदोलन का भी हवाला देते हुए कहा कि शरीयत से चलने वाले देशों में भी इसके खिलाफ गुस्सा दिख रहा है। उन्होंने अदालत से कहा, 'उन देशों में भी महिलाएं हिजाब के खिलाफ आंदोलन कर रही हैं, जहां से इस्लाम की शुरुआत हुई थी।' मेहता ने कहा कि हिजाब अनिवार्य नहीं है और यहां तक कि इस बात पर भी चर्चा करने की जरूरत नहीं है कि इसका इस्लाम में क्या स्थान है। 

वहीं केस की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि यूनिफॉर्म स्कूलों और कॉलेजों में असमानता को समाप्त करने के लिए है। जजों ने कहा कि जैसा संस्थान ने बताया हो, उसी तरह से यूनिफॉर्म पहननी चाहिए। अदालत ने कहा कि ड्रेस की अनिवार्यता से किसी की धार्मिक मान्यताओं पर प्रभाव नहीं पड़ता है। वहीं कर्नाटक सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यदि क्लास का हर बच्चा अपनी धार्मिक पुस्तकों और रिवाजों का हवाला देते हुए ड्रेस पहनने की बात करेगा तो फिर कोई नियम ही नहीं रह जाएगा। इससे समानता के सिद्धांत को भी नुकसान होगा। 

हाई कोर्ट के फैसले पर भी SC में उठा सवाल

अदालत ने इस दौरान कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर भी टिप्पणी की और कहा कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य है या नहीं, इसे आधार बनाते हुए सुनवाई करना गलत था। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हिजाब पर बैन का विरोध करने वालों ने ही अदालत में यह तर्क दिया था कि यह इस्लाम में जरूरी है। हालांकि वे कोर्ट में यह नहीं साबित कर सके कि हिजाब की अनिवार्यता का कहां वर्णन किया गया है और कैसे यह जरूरी है।

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