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सिलसिलेवार ट्वीट्स में रीजीजू ने कहा कि देश में हर समुदाय के साथ अल्पसंख्यक भी सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रहा है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 गुजरात दंगों पर बनी BBC डॉक्यूमेंट्री से कानून मंत्री किरेन रीजीजू खफा हैं। उन्‍होंने कहा कि भारत की छवि ऐसे 'दुर्भावनापूर्ण अभियानों' से नहीं गिराई जा सकती। सिलसिलेवार ट्वीट्स में रीजीजू ने कहा कि देश में हर समुदाय के साथ अल्पसंख्यक भी सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रहा है। कानून मंत्री ने लिखा कि पीएम मोदी की आवाज 1.4 बिलियन भारतीयों की आवाज है। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' पर विवाद छिड़ा है। रीजीजू ने कहा कि 'भारत में अभी भी कुछ लोग औपनिवेशिक नशे से दूर नहीं हुए हैं। वे बीबीसी को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग अपने नैतिक आकाओं को खुश करने के लिए किसी भी हद तक देश की गरिमा और छवि को कम करने में लगे हैं।' दो हिस्सों में बनी इस डॉक्युमेंट्री सीरीज का नाम - इंडिया : द मोदी क्वेश्चन है। यह गुजरात में हुए दंगों पर है जब नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।

BBC डॉक्यूमेंट्री से जुड़े वीडियो, ट्वीट पर रोक
पीएम मोदी से जुड़ी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के हिस्सों को सोशल मीडिया पर जारी करने पर सरकार ने रोक लगा दी। सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इस डॉक्यूमेंट्री के पहले एपिसोड को दिखाने वाले कई यूट्यूब वीडियो पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक, संबंधित यूट्यूब वीडियो के लिंक शेयर करने वाले 50 से ज्यादा ट्वीट्स को भी ब्लॉक करने को कहा गया है। सूचना और प्रसारण सचिव ने आईटी नियम, 2021 के तहत आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ये निर्देश जारी किए हैं। सरकार के निर्देश पर अमल करते हुए यूट्यूब और ट्विटर दोनों ने संबंधित वीडियो हटा लिए हैं।

भारत ने कहा, गुजरात दंगों पर BBC की डॉक्युमेंट्री प्रोपेगेंडा का हिस्सा
भारत ने BBC डॉक्युमेंट्री को पूर्वाग्रह से ग्रसित और खास नैरेटिव के प्रचार का अजेंडा बताया है। गुरुवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक सवाल पर बीबीसी पर गंभीर सवाल उठाया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह फिल्म भारत में प्रसारित नहीं हुई है, लेकिन जितना भी इसके बारे में सुना है, यह पूरी तरह प्रचार का हिस्सा है और एक खास नैरेटिव (कहानी) को प्रचारित करने की साजिश है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि इसमें पूर्वाग्रह, वस्तुनिष्ठता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से झलकती है। उनकी यह एकतरफा राय इसके पीछे उद्देश्य और अजेंडा के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।

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