वाट्सएप पर मेसेज मिला : जैन दर्शन – जैनधर्म – जिनधर्म - जनधर्म का दुश्मन कौन ?
एन. सुगालचन्द जैन
इस संदर्भ में मेरा मानना है कि हम ही जिन धर्म के दुश्मन है । हम नहीं चाहते कि जैन दर्शन जन दर्शन बने । हमारी भगवान महावीर में श्रद्धा हैं ।परंतु महावीर वाणी पर श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास कम है । महावीर वाणी के मूल अनेकान्तवाद, विवेक, जागरूकता, देशकाल भाव आदि शब्दों को हमने अपने शब्दकोश से निकालकर उनके स्थान पर अहंकार, लोभ, आस्तेय, क्रोध, इर्ष्या, नक़ल आदि शब्दों को जोड़ दिया है । सम्मेद शिखर के रख-रखाव के विषय में भारत सरकार व झारखण्ड सरकार ने कुछ कानून वर्ष 2019 में पारित किये थे परन्तु हाल ही में कुछ स्वयंभू नेताओं ने बिना किसी शोध के बवाल खड़ा कर दिया । नेतृत्वहीन समाज इन स्वयंभू नेताओं के कहने पर सड़कों पर उतर आया। सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों के माध्यम से समाचार प्राप्त हो रहे है कि सम्मेद शिखर में स्थानीय जनता भी जैन समाज के विरोध में सड़कों पर उतर आयी है । इसलिए अब सतर्कता बरतते हुए व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सूचनाएँ प्रसारित की जा रही है कि इसके विरोध में किसी भी तरह के प्रतिक्रिया या कमेन्ट नहीं करें । हमारी लड़ाई स्थानीय लोगों से नहीं है, हम सरकार की उस पॉलिसी से लड़ रहे हैं जो हमारे धर्म एवं कर्म के विरुद्ध है । स्थानीय लोग तो हमारे भाई है, वे हमारी सेवा वर्षों से करते आ रहे हैं । उनसे हमको कोई समस्या नहीं है ।उन्हें जैनत्व के रंग में रंगना हमारा कर्तव्य बनता हैं । जिसका हम प्रयास करेंगे एवं उनके जीवन में खुश हाली लाएँगे ।दिनांक 09 जनवरी 2023 को एक अन्य सन्देश के माध्यम से सुचना प्राप्त हुई कि स्थानीय जन एवं प्रशासन के मध्य वार्ता कर इस मामले को सुलझा लिया गया है ।यह हम सबके लिए विचारणीय है कि यदि हम इस विषय में स्वयंभू नेताओं की बातों में नहीं आते एवं भगवान महावीर के संदेशों को ध्यान में रखकर एक नेतृत्व कायम कर बात को आगे बढ़ाते तो उसकी गरिमा अलग होती । लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्या यह हमारे लिए उचित हुआ? कृपया चिंतन मनन करें । जय जिनेन्द्र ।