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लद्दाख- कश्मीर को जोड़ने वाली रणनीतिक 18 किलोमीटर लंबी जोजिला सुरंग पर काम तेजी से चल रहा है

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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के 3 साल शुक्रवार को पूरे हो गए। अनुच्छेद हटाने के साथ केंद्र सरकार ने राज्य को बांटकर दो नए केंद्र शासित प्रदेश बना दिए थे। केंद्र की ओर से तब सुरक्षा, विकास और रोजगार के तमाम वादे किए गए थे। अब 3 साल बीत चुके हैं।

इस दौरान कश्मीरी पंडितों, टारगेटेड किलिंग, परिसीमन, पर्यटन समेत तमाम मुद्दों को लेकर जम्मू-कश्मीर लगातार चर्चा में बना हुआ है, लेकिन लद्दाख की बात नहीं हो रही है।

पहले 3 प्वाइंट में जानिए लद्दाख में क्या हुआ, क्या बाकी है...

  • करगिल में हिमालय और ट्रांस-हिमालयी अध्ययन केंद्र, जनजातीय अनुसंधान केंद्र स्थापित हो चुके हैं।
  • जैव उर्वरक के वितरण के लिए 64 गांवों का चयन रासायनिक मुक्त गांव के लिए किया गया है।
  • लद्दाख में 5,000 से अधिक सरकारी पद खाली, जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 25% पहुंच गई है।

लद्दाख का बदला स्वरूप, सड़क-हॉस्पिटल का काम जारी
तमाम समस्याओं के बावजूद, लोगों को लगता है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने से लद्दाख को काफी फायदा हुआ है। लोगों का मानना है कि बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए फंड कई गुना बढ़ा है। अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ी हैं और आधुनिकीकरण जारी है। लद्दाख के लिए पहली बार केंद्रीय विश्वविद्यालय, मेडिकल और पैरामेडिकल कॉलेज और 500 बिस्तरों वाले अस्पताल की घोषणा की गई है।

लद्दाख- कश्मीर को जोड़ने वाली रणनीतिक 18 किलोमीटर लंबी जोजिला सुरंग पर काम तेजी से चल रहा है। यह 2024 तक तैयार हो जाएगी। हालांकि, लोग यह भी कहते हैं कि शिक्षा-स्वास्थ्य के अलावा सरकार के बाकी वादे अधूरे ही हैं। 5,958 करोड़ रुपए के बजट को लद्दाख एक साल में खर्च नहीं कर पाया है। अंतर जिला स्तर पर करगिल और लेह के दोनों नेता लगातार बैठक कर रहे हैं और नए रास्ते पर चल रहे हैं।

पैसे की कमी नहीं, फिर भी काम की रफ्तार धीमी
केडीए के सदस्य सज्जाद कारगिली ने कहा कि सरकार ने हमारी मांगों पर बातचीत करने का वादा किया था, लेकिन इसमें देरी हो रही है। इससे लद्दाख के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। एक विशेषज्ञ ने कहा कि लद्दाख के पास पैसे की कमी नहीं है। विकासात्मक परियोजनाएं, यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज फेंसी चीजें हो सकती हैं।

यदि सब कुछ बाहरी लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है और स्थानीय लोगों के पास कोई अधिकार नहीं होगा, ताे यह चीजें मदद नहीं करेंगी। लोगों को अधिकार दें। तभी लद्दाख का कायाकल्प होगा। लद्दाख के लोगों के लिए रोजगार की कमी बड़ी चिंता बन रही है।

बहुत से लाेगाें का मानना है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद उन्होंने नौकरियों, भूमि के स्वामित्व और व्यवसाय समेत सभी क्षेत्रों में सुरक्षा खो दी है। डर है कि बाहरी लोग आएंगे और नौकरियां, व्यवसाय छीन लेंगे। पिछले हफ्ते ही लद्दाख ट्रैवल ट्रेड बॉडीज ने उन 6 व्यावसायिक संपत्तियों के साथ असहयोग करने की घोषणा की, जहां बाहरी लोगों ने निवेश किया है।

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