Anant TV Live

युवा किसान धीरज रावत कहते हैं कि ऐसे लोगों के लिए जैविक खेती करना और आसान हो जाता है, जो पशुपालन भी करते हैं।

 | 
sd

शिवपुरी जिले के रामनगर गधाई गांव के किसान धीरज हरनाम सिंह रावत। इंदौर से इंजीनियरिंग की। खेती से ऐसा मन लगा कि इंजीनियरिंग छोड़ दी। 2.5 बीघा में पहली बार जैविक खेती शुरू की। करीब 65 हजार रुपए की सब्जियां गांव में बांट दी, ताकि लोग इसका स्वाद चखें। इनके फायदे जान सकें।

पिता पहले से खेती करते आ रहे हैं, इसलिए नौकरी के बजाय नई तकनीक से खेती करने की सोची। धीरज चाहते हैं कि गांव के दूसरे लोग भी रासायनिक खेती छोड़ जैविक खेती करें।

आइए, धीरज से जानते हैं पारंपरिक से जैविक खेती में बदलाव की कहानी…

मैंने इंदौर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। पढ़ाई के बाद नौकरी के लिए बाहर जाने के बजाय खेती को अपनाया। यहां चुनौती थी कि पारंपरिक खेती में लागत और मुनाफे का अंतर काफी कम होता जा रहा है। कई बार नुकसान ही होता है। पिता लंबे समय से पारंपरिक खेती करते आ रहे हैं, इसलिए मुझे इसका अनुभव है। यही वजह रही कि मैंने जैविक खेती करने की ठानी। इसमें मुश्किलें थीं, लेकिन हौसला भी था। फिर क्या था। मैंने पिता को मंशा बताई। उनके मार्गदर्शन में मैंने पहले आधे बीघा खेत को तैयार किया। इसमें सब्जियां लगाईं। खाद भी खुद ही तैयार किया।

मैंने न सिर्फ खेत से जैविक खेती की शुरुआत की, बल्कि इसकी उपज गांव के लोगों को बांटता रहा। इसकी एकमात्र वजह थी कि लोग जैविक खेती के महत्व को समझें। पहली बार मैंने 2.5 बीघा में सब्जियां उगाईं। इससे जो उपज मिली, उसे लोगों में बांट दिया। 2.5 बीघा खेत में उपजी 200 किलो ककड़ी, 400 किलो लौकी, 400 किलो टमाटर, 200 किलो भिंडी, 50 किलो खरबूज और 30 किलो तुरई गांव के लोगों में बांट चुका हूं। इसे खुले बाजार में बेचा जाए, तो करीब 60-65 हजार रुपए तक मिल सकते थे, जबकि ये सिर्फ आधे साल की कमाई है। अब अगले महीने से जो उपज मिलेगी, उसे बाजार तक लेकर जाऊंगा। साथ ही, लोगों को जागरूक करने के लिए सब्जियों का निशुल्क वितरण करता रहूंगा।

2.5 बीघा से शुरुआत, अब 20 बीघा में खेती
लौकी, तुरई, धनिया, भिंडी, टमाटर, बैंगन, हरी मिर्च की खेती कर रहे हैं। ककड़ी और खरबूजा की भी खेती कर चुके हैं। इस बार धीरज 5 बीघा में सब्जियों की खेती और 15 बीघा खेत में गेहूं, सरसों, उड़द, मूंग, चना और मूंगफली की खेती कर रहे हैं।

दोनों तरीकों से कर रहे सरसों और गेहूं की खेती
सरसों और गेहूं की खेती जैविक और रासायनिक दोनों तरीकों से कर रहे हैं। धीरज का कहना है कि सब्जियों की खेती में प्रयोग सफल रहा है। इसके मोटे अनाज पर भी आजमाना चाहते हैं। पहली बार इन ये दोनों फसलें दोनों तरीके से लगा रहे हैं। दोनों की पैदावार की स्थिति देखने के बाद अगले साल पूरी तरह से जैविक खाद से मोटे अनाज की खेती शुरू करेंगे। सबसे ज्यादा दवा सब्जियों में डाली जाती हैं। इससे सब्जी की गुणवत्ता और स्वाद पर भी असर आने लगता हैं। जैविक खेती से मोटे अनाज का प्रयोग सफल रहा, तो इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।

पशुपालन से आसान हुआ जैविक खेती का रास्ता
युवा किसान धीरज रावत कहते हैं कि ऐसे लोगों के लिए जैविक खेती करना और आसान हो जाता है, जो पशुपालन भी करते हैं। धीरज विकास प्रस्फुटन समिति रामनगर गधाई के अध्यक्ष भी है। उनके यहां भी पशुपालन होता है, इसलिए खाद बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में गोबर उपलब्ध हो जाता है। गोबर की खाद मवेशियों के ठोस व द्रव मल-मूत्र का एक सड़ा हुआ मिश्रण होता है। इसमें सामान्यत: भूसा, बुरादा, छीलन अथवा अन्य कोई शोषक पदार्थ मिले होते हैं। जहां पशुओं को बांधा जाता है, उस जगह की गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करते हैं।

अगले 2 से 3 साल में दिखेगा असर
धीरज ने बताया कि यदि कोई किसान रसायनिक खेती छोड़कर जैविक खेती अपनाता है, तो इसका असर उसे 2 से तीन साल बाद दिखाई देगा। हालांकि, स्वाद में अंतर पहले साल से दिखने लगेगा। 2 से 3 साल में उत्पादन भी ठीक-ठाक होने लगेगा। कई खेतों में 4 साल भी लग जाता है। इससे खेत की उर्वरा शक्ति भी अच्छी हो जाएगी। ढाई बीघा में पारंपरिक खेती से मुनाफा करीब 12 से 15 हजार का होता है, जबकि जैविक खेती में ये पहले साल से ही 20 हजार तक का होता है। करीब 10 साल लगातार जैविक खेती करने से खेत इसके अनुकूल हो जाता है, तब रासायनिक के मुकाबले दोगुना मुनाफा लिया जा सकता है।

नीम के पत्ते से बनाया स्प्रे
धीरज ने एक स्प्रे भी बनाया है। फसल में इल्ली या कीट लग जाने पर इसका छिड़काव करते हैं। इस स्प्रे की मांग आसपास के किसानों में काफी है। नीम के पत्ते और गोबर की राख आदि से बने इस स्प्रे के उपयोग से धीरज के गांव के अन्य किसान भी अपनी फसलों को कीट-पतंगों से बचा रहे हैं।

वर्मी कंपोस्ट बनाने की दे रहे ट्रेनिंग
अपनी फसलों के लिए धीरज खुद ही वर्मी कंपोस्ट तैयार करते हैं। साथ ही, गांव के अन्य किसानों को भी वर्मी कंपोस्ट बनाने का प्रशिक्षण देते हैं। धीरज ने बताया कि पहली बार प्रक्रिया शुरू करते समय गोबर के ढेर में थोड़े से केंचुए डालते हैं। इसके बाद गोबर को जूट के बोरे से ढंक देते हैं। नमी के लिए बोर पर पानी का छिड़काव करते रहते हैं। गोबर को खाते हुए केंचुए डाले गए धीरे-धीरे आगे बढ़े होते जाते हैं। अपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट बना कर छोड़ते जाते हैं।

ऐसे तैयार करते हैं जैविक खाद
जैविक खाद बनाने से पहले यह समझ लेना होगा कि किस अनुपात में क्या मिलाना है। अगर 10 किलो गोबर से खाद बनानी है, तो उसके लिए अन्य मिश्रण इस प्रकार रहेगा। 10 किलो गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गुड़, 1 किलो चोकर, 1 किलो मिट्टी का मिश्रण तैयार करना चाहिए। इन पांच तत्वों को मिलाते हैं। मिश्रण बन जाने के बाद इसमें 1 से 2 लीटर पानी डाल दें। अब इसे 20 दिनों तक किसी ड्रम में रख दीजिए।

ध्यान रखें कि इस ड्रम पर धूप न पड़े। अच्छी खाद बनाने के लिए इस घोल को प्रतिदिन 1 बार अवश्य मिलाएं। 20 दिन बाद ये खाद बन कर तैयार हो जाएगी। यह खाद सूक्ष्म जीवाणु से भरपूर रहेगी। खेत की मिट्टी की सेहत के लिए अच्छी रहेगी।

Around The Web

Trending News

You May Also Like