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भूगोल में स्वदेशी ज्ञान को एकीकृत करने की आवश्यकता :प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह

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 "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: भूगोल विषय में आदर्श पाठ्यक्रम एवं विषयवस्तु पर दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा संपोषित, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा द्वी- दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है।
कार्यशाला का शुभारंभ विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के महासचिव, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति  प्रो० नरेंद्र कुमार तनेजा,  दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के  कुलपति प्रो० कामेश्वर नाथ सिंह, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० के० एन० पी० राजू, शिक्षा शास्त्र के डीन, विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम निर्देशक प्रो० रविकांत तथा विश्वविद्यालय के  भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम की सह-निर्देशक प्रो० किरण कुमारी 
ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया।
वहीं कार्यशाला में आय मुख्य अतिथि प्रो० नरेंद्र कुमार तनेजा ने कहा कि पाश्चात्य शिक्षा मनुष्य को मशीन, पैसा कमाना तथा जीवनयापन को समाज  से दूर ले जाने की कार्य कर रही है, जबकि भारतीय प्राचीन शिक्षा विश्व के महत्वपूर्ण ज्ञान का साधन हैं। इसको उच्च शिक्षा से जोड़कर युवाओं के मानसिक विकास कर  परिवार, समाज तथा राष्ट्र को विकसित किया जा सकता हैं। भारतीय प्राचीन शास्त्रों तथा ग्रंथों में भूमि, जल, पृथ्वी, वायु तथा आकाश के ज्ञान विकसित किया गया और आज हम उसे आधुनिक भूगोल में पढ़ते है। अर्थव वेद में पृथ्वी, कृषि जीव-जंतु तथा स्थानिक की विचार विकसित की गई लेकिन आज के युवा पश्चात शिक्षा की ज्ञान को हासिल कर वैश्विक परिदृश्य में विचार रहित बन रहे है। वर्तमान समय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय परंपरा को ध्यान में रख कर भूगोल को प्राचीन भारतीय शिक्षा व्वयस्था को पाठ्यक्रम में लागू कर सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
कार्यशाल के अतिथि  प्रो० के० एन० पी० राजू ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भूगोल के स्थान को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि भारतीय प्राचीन शिक्षा में भूगोल का अर्थ पंचभूत तत्व की पहचान के साथ ज्ञान ,धर्म, अर्थ, कांड मोक्ष जैसे विचार युवाओं को बताने की आवश्यकता है। 
प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह,  कुलपति, सीयूएसबी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में भूगोल और अन्य विषयों के अध्ययन को भारत केंद्रित बनाने के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने पाठ्यक्रम में स्वदेशी ज्ञान को एकीकृत करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति, 2022 पर भी जोर दिया, जिसका लक्ष्य 2030 तक उच्च-रिज़ॉल्यूशन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण और मानचित्रण स्थापित करना है।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कार्यक्रम के संचालक लेफ्टिनेंट प्रज्ञा रही तथा कार्यशाला के उद्घाटन सत्र के अंत में कार्यशाला संयोजक डॉ. तरूण कुमार त्यागी ने कार्यशाला में उपस्थिति सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। वहीं कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पवन कुमार मिश्रा , सहायक प्रोफेसर किशोर सोढ़ी , सहायक प्रोफेसर सुनीता तथा विश्वविद्यालय के स्कॉलर शिवम, विशाल ,अभय ,आकाश के साथ अन्य लोग उपस्थित थें।

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