सहजयोग में स्वास्तिक का अत्यधिक महत्व है

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स्वास्तिक (Swastik) संस्कृत के स्वस्ति शब्द से निर्मित है। स्व या सु का अर्थ है अच्छा और अस्ति का अर्थ है होना। यह मानव समाज एवं विश्व के कल्याण की भावना का प्रतीक भी है।
 स्वास्तिक एक शुभ प्रतीक माना जाता है, जो अनादि काल से ही संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है।   कई देशों की संस्कृतियों ने स्वास्तिक का सम्मान किया है और  इसे मंगलमयता के प्रतीक के रुप में  मान्यता दी है।  सही प्रकार से अंकित की गया स्वास्तिक घड़ी की  सुई की दिशा में घूमते हुये चमत्कारिक गुणों का प्रभाव छोड़ता है।   स्वस्तिक को बाधा निवारक माना जाता है। 
 स्वास्तिक में अतिगूढ़ अर्थ एवं निगूढ़ रहस्य छिपा है।  सहजयोग से हमने जाना है कि हमारे सूक्ष्म शरीर के मूलाधार चक्र में स्थित गणपति के 'गं' बीजाक्षर का चिह्न भी स्वस्ति जैसा प्रतीत होता है। इसके रूप एवं समूचे मंत्र का स्वरूप स्वास्तिक का आकार ग्रहण करता है। 
सीधे घड़ी की दिशा में बने स्वास्तिक में चैतन्य लहरियां देने के गुण होते हैं सहज ध्यान में हम इन चैतन्य लहरियों को महसूस करते हैं। स्वस्तिक सदैव सीधे ही होने चाहिए उल्टी दिशा में बने स्वस्तिक को मंगलमय नहीं माना जाता है।   कई स्थानों पर स्वस्तिक को बिना सोचे समझे उल्टा भी बना दिया जाता है क्योंकि उन्हें चैतन्य लहरियों का ज्ञान नहीं होता‌ है।   सहज योग में मूलाधार चक्र पर चार पंखुड़ी होती है वैसे ही जैसे स्वस्तिक के चार कोण।  हम सहज योग के माध्यम से जान जाते हैं कि स्वस्तिक अल्फा और ओमेगा के प्रतीक हैं।  
आत्मसाक्षात्कार पाने के पूर्व हम संदेशों और प्रतीकों में ईश्वरीय अनुभूति देखने का प्रयास करते हैं लेकिन जब हमें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तब हम प्रतीकों को अपने चक्रों पर जान पाते हैं। 
स्वस्तिक के बारे में श्री माताजी ने अपने एक प्रवचन में बताया कि  हिटलर तिब्बत के बौद्धों से बहुत  प्रभावित थे जो स्वास्तिक का इस्तेमाल अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए करते थे ।  लेकिन हिटलर के अहंकार  से उसके द्वारा अंकित स्वास्तिक विकृत हो गया था। स्वास्तिक की पावनता  व शक्ति सहज ध्यान में श्री गणेश की उपस्थिति का आभास कराती है। 
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