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दो प्रधानमंत्री जिन्होंने कभी नहीं फहराया लाल किले पर तिरंगा – जानें इसके पीछे का कारण

नई दिल्ली दो दिन यानी 15 को देश अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। 15 अगस्त को नई दिल्ली स्थित लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं। यह परंपरा 1947 से चली आ रही है। हालांकि इतिहास में ऐसे भी प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने कभी यह सम्मान नहीं निभाया। वो देश के …
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नई दिल्ली

दो दिन यानी 15 को देश अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। 15 अगस्त को नई दिल्ली स्थित लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं। यह परंपरा 1947 से चली आ रही है। हालांकि इतिहास में ऐसे भी प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने कभी यह सम्मान नहीं निभाया। वो देश के प्रधानमंत्री तो बने लेकिन लाल किले पर तिरंगा नहीं फहरा पाए। ये दो प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा और चंद्रशेखर हैं। तो चलिए जानते हैं क्यों इन दोनों प्रधानमंत्रियों को यह मौका नहीं मिला? इसके पीछे क्या कारण था?

गुलजारीलाल नंदा
गुलजारीलाल नंदा को दो बार देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला। पहली बार 27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद और दूसरी बार 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद। दोनों ही मौकों पर उन्होंने सिर्फ अंतरिम अवधि के लिए पद संभाला था.। उनका कार्यकाल दोनों बार कुछ ही हफ्तों का रहा। पहली बार लगभग 13 दिन और दूसरी बार भी करीब 13 दिन, क्योंकि उनके कार्यकाल के दौरान 15 अगस्त नहीं आया। लिहाजा उन्हें कभी लाल किले पर ध्वजारोहण करने का सौभाग्य नहीं मिला।

चंद्रशेखर
चंद्रशेखर भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे। इन्होंने 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक देश की बागडोर संभाली। उनका कार्यकाल 6 महीने से कुछ अधिक समय का था। इस दौरान देश में राजनीतिक अस्थिरता थी और उनकी सरकार कांग्रेस के समर्थन से चल रही थी। हालांकि यह सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल सकी और 6 महीने के अंदर उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके कार्यकाल में भी 15 अगस्त हीं आया, जिसके चलते वे लाल किले पर तिरंगा नहीं फहरा सके।

क्यों खास है लाल किले पर तिरंगा फहराना?
15 अगस्त 1947 वह ऐतिहासिक दिन जब भारत ने ब्रिटिश शासन की बेड़ियों को तोड़कर आजादी की सांस ली. यह दिनकेवल एक तारीख नहीं, बल्कि लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान, संघर्ष और समर्पण की गाथा है। लाल किले पर तिरंगा फहराना सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि यह देश के लोकतांत्रिक गर्व और स्वतंत्रता का प्रतीक है।

यहां से प्रधानमंत्री देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस पर संबोधित करते हैं और आने वाले साल के लिए सरकार की नीतियों का खाका पेश करते हैं। 1947 में पंडित नेहरू ने पहली बार तिरंगा फहराकर इस परंपरा की शुरुआत की थी, जो अब तक हर साल निभाई जाती हैं। इस दिन दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले पर पहली बार तिरंगा फहराया था। इसके बाद भारत विश्व के मानचित्र में एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा। इस वर्ष पीएम नरेंद्र मोदी ध्वजारोहण कर देश के नाम संबोधन देंगे।

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