हड़प्पा सभ्यता और वामपंथियों का झूठा इतिहास !

जितेश कुमार 
जिला प्रचारक, गोपालगंज उ.बि.
रा. स्व. संघ
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जितेश कुमार  जिला प्रचारक, गोपालगंज उ.बि. रा. स्व. संघ


रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। इससे स्पष्ट होता है तथाकथित वामपंथी ने फेंक नैरेटिव प्रसारित की है कि आर्य भारत के नहीं है। यहां के मूल निवासी को युद्धों में परास्त कर भारत पर वर्चस्व स्थापित किये है। साथ ही उनको अछुत कहकर समाज के सारे दायित्व से बाहर करके उनसे नीचता का काम करवाया है। उनके जमीन और सम्पतियों पर जबरन अधिकार किया है। यह बात तब गलत साबित हो जाती है जब NASA के वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर रामायण व महाभारत का पुष्टि की। 
जिस सिंधु घाटी की सभ्यता के विनाशकर्ता के रूप में आर्यों को इतिहास में अंकित करने का वामपंथीयों ने कोशिश किया और कुछ हद तक सफलता भी पायी। आज इसी सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में कुछ तार्किक सत्य की ओर ध्यान देते है तो वामपंथी इतिहासकार का झूठ और फेंक नैरेटिव को प्रचारित करने का इतिहास भी प्रकट होता है।
सिन्धु घाटी के संभ्यता को हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। इतिहास बताता है कि वर्तमान सिंधु नदी के तटों पर 3500 ई.पू. में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल, सभ्यता के नगर थे।  इतिहास के पुस्तकों ने इस सभ्यता का विस्तार सिन्धु, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया था, किंतु पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार अब इसका विस्तार समूचा भारत तमिलनाडु से वैशाली (बिहार) तक और पूरा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान के कुछ भाग तक विस्तृत है। सिन्धु सभ्यता का काल भी 7000 ईसा पूर्व से प्राचीन होने का साक्ष्य है। सिलो, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट मिली है, यही सिंधु घाटी की लिपि है। वामपंथी इतिहासकारों का दावा है कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है और पढ़ी नहीं जा सकती है। सिंधु घाटी की लिपि के समकक्ष तथाकथित प्राचीन सभी लिपियाँ जैसे इजिप्ट, चीनी, फ़ोनीशियाई, मेसोपोमियाई आदि सब पढ़ ली गयी है। आज कंप्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर माकोंव विधि से प्राचीन भाषा को पढ़ना सरल हो गया है। फिर भी सिंधु घाटी की लिपि जानबूझकर नहीं पढ़ा गया और ना ही इसको पढ़ने के सार्थक प्रयास किए गये। क्योकि भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद पर पहले अंग्रेजों और फिर कम्युनिस्टों का कब्जा रहा। इनके द्वारा सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने की कोई भी विशेष प्रबंध नहीं किये गये। आखिर ऐसा क्या था सिंधु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे कि सिंधु घाटी के लिपि को पढ़ा जाए? उनको डर था कि सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जाएगी. इजिप्ट, चीन, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियन मेसोपोटामिया से भी पुरानी। जिससे पता चलेगा कि वह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। इससे भारत का महत्व बढ़ेगा तो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा। अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा प्रचारित आर्य बाहर से आए हुए आक्रमणकारी जाति है और इन्होंने यहां के मूल निवासियों अर्थात सिंधु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उसकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुपकर दक्षिण भारतीय द्रविड़ बन गए शूद्र व आदिवासी बन गये, आदि आदि बातें गलत साबित हो जाती ना। 
आपको मालूम होना चाहिए कि देश के वामपंथी फर्जी इतिहासकार सिंधु घाटी की लिपि को सुमेरियन, इजिप्शियन, चीनी, मुंडा (आदिवासी की भाषा) और ईस्टर दीप के आदिवासी की भाषा से जोड़कर पढ़ने का प्रयास करते रहे है। यह सारे प्रयास असफल साबित हुए। किन्तु इसे भारत की सर्वाधिक पुरानी ब्राह्मी लिपि के पढ़ने की कोशिश नहीं करते है। वे सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने में निम्नलिखित समस्याएं बताते है। सामान्यतः लिपियों में अक्षर कम होते है; जैसे अंग्रेजो में 26 देवनागरी में 52 आदि, मगधी लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह है, किन्तु सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने में  कठिनाई आती है कि इसका काल 7000 ई.पूर्व.से 1500 ई.पूर्व. तक का है इतनी लंबी अवधि में अनेकों बड़े परिवर्तन हुये। इतनी लंबी अवधि लिपि में भी अनेक परिवर्तन अवश्य हुये होंगे। साथ ही लिपि में स्टाइलिस्ट वेरिएशन भी बहुत है। और इसमें 800 के अधिक अक्षर है। हमारे ही देश के तथाकथित बड़े बड़े इतिहासकार इसे न पढ़ने में समस्याओं का ग्रंथ लिखते है, इसे विदेशी लिपियों और भाषाओं में पढने का प्रयास करते है क्योंकि उनको आर्यों को बाहरी जो साबित करना था। अनेक तर्क देकर सिन्धु सभ्यता की लिपि को पढ़ने का एक भी प्रयास भारतीय दृष्टि से नहीं की; ना ही यहाँ के प्राचीन लिपियों का सहारा लिया। लेकिन दो इतिहासकारों ने सिन्धु लिपि को पढ़ने का सार्थक प्रयास किया है। और उनका पड़ताल बहुत हद तक सही भी साबित हुआ है।  सिद्धांत काक और इरवाथम महादेवन ने सिंधु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षरों के बारे में यह माना है कि इसमें कुछ वर्णमाला (स्वर,व्यंजन, मात्रा संख्या), कुछ योगिक अक्षर और शेष चित्र लिपि है; अर्थात या भाषा अक्षर और चित्र लिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिंधु घाटी की भाषा है। जिस प्रकार सिंधु घाटी की लिपि पशु की मुख की ओर अथवा दाएं से बाएं लिखी जाती है उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि की दाएं से बाएं लिखी जाती है। उन्होंने कहा कि अब तक सिंधु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त है। इसमें वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह है लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80% बार है। जिसे वे ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षर से लिखावट में समानता के आधार देखते है। उन्होंने सिन्धु लिपि के 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग किया और उसकी ध्वनि का पता लगने भी कोशिश की। तब वे कहते कि ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिंधु घाटी की लिपि पढ़ने पर सभी संस्कृत के शब्द आते हैं। जैसेकि श्री, अगस्त, मृत, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु मूषिका, पग, पञ्च, मशक, पितृ,  अग्नि, इंद्र, मित्र आदि। निष्कर्ष यह है कि - सिंधु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि के पूर्वज लिपि थी। सिंधु घाटी के लिपि को ब्राह्मणी के आधार पर पढ़ा जा सकता है। उस काल में संस्कृत भाषा थी। जिसे सिंधु घाटी के लिपि में लिखा गया था। सिंधु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे। वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन 7000 ईसा पूर्व से भी अधिक पुरानी, हिंदू विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। हिंदू का मूल निवास सप्त देश यानी (सिंधु सरस्वती क्षेत्र) था। जिसके विस्तार में संपूर्ण भारत देश था। वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं से भारत नहीं आए थे और ना ही यह आक्रमणकारी थे। आर्य और द्रविड़ जैसी कोई भी पृथक जाति नहीं थी जिसमें परस्पर पर युद्ध हुआ हो।


जितेश कुमार  जिला प्रचारक, गोपालगंज उ.बि. रा. स्व. संघ

जितेश कुमार 
जिला प्रचारक, गोपालगंज उ.बि.  रा. स्व. संघ

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