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नासा: खगोलविदों के अध्ययन के लिए अनमोल साबित हुए हबल के खोजे छोटे ब्लैक होल समूह

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नासा: खगोलविदों के अध्ययन के लिए अनमोल साबित हुए हबल के खोजे छोटे ब्लैक होल समूह

वॉशिंगटन । अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा का हबल टेलीस्कोप एक बेहतरीन प्रकाशीय टेलीस्कोप सिद्ध हो रहा है। पिछले कई सालों से यह हमें हैरतअंगेज और मनमोहक तस्वीरें देता आ रहा है जो हमारे खगोलविदों के अध्ययन के लिए अनमोल साबित हुई हैं। इस कड़ी में हबल ने एक और खास तस्वीर शेयर की है जो ब्लैकहोल के बारे में बिलकुल नई जानकारी देती है। ग्लोबुलर क्लस्टर एनजीसी 639 की इस तस्वीर में बहुत सारे छोटे ब्लैकहोल दिखाई दे रहे हैं। ग्लोबुलर क्लस्टर एनजीसी 639 के बीचों बीच दिखाई देने वाले ये पिंड देखकर खगोलविदों को लगा था कि यह एक मध्य भार का ब्लैकहोल है लेकिन हैरानी तब हुई जब यह पता चला कि यह तो छोटे ब्लैक होल का समूह है। इस तरह से एक साथ बहुत सारे ब्लैकहोल पहले कभी नहीं पाए गए हैं। वैज्ञानिकों के लिए यह एक उत्साहजनक खबर मानी जा रही है।

पेरिस में पेरिस इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के एदवार्दो विट्राल ने बताया, हमने ग्लोब्यूलर क्लस्टर के घने केंद्र में एक अदृश्य भार के बहुत ही पक्के प्रमाण हासिल किए हैं। लेकिन हम हैरान तब हुए जब हमने पायाकि यह अतरिक्त भार एक बिंदु की तरह नहीं दिख रहा था जैसा कि एक विशालकाय ब्लैक होल में होता है। विट्राल ने बताया कि उनकी टीम ने पाया कि यह क्लस्टर के कुछ प्रतिशत के हिस्से तक फैला हुआ था। उनकी अध्ययन यह पता करने वाला पहला अध्ययन है जिससे इसके भार और इसके विस्तार के बारे में पता चला है। इससे यह ज्ञात हो सका कि यह वास्तव में सिमटे हुए ग्लोब्यूलर क्रोड़ के केंद्र में बहुत से ब्लैकहोल का समूह है।

नासा के मुताबिक ग्लोब्यूलर क्लस्टर तारों के बहुत ही घने सिस्टम होते हैं जिसमें तारे एक दूसरे के बहुत नजदीक होते हैं। ये सिस्टम बहुत ही पुराने होते हैं। और इस अध्ययन में जिस क्लस्टर का अध्ययन किया जा रहा था वह एनजीसी 6397 लगभग हमारे ब्रह्माण्ड जितना ही पुराना है। यह क्लस्टर 7800 प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है। इस लिहाज से यह पृथ्वी के सबसे नजदीक का ग्लोब्यूलर क्लस्टर है। रिपोर्ट में बताया गया है कि विट्राल और उनके साथी गैरी मैमन ने क्लस्टर में तारों के वेग को समझ कर छिपे हुए भार का पता लगाया और इस क्ल्सटर में छिपे हुए बिखरे और दिखाई देने वाले दोनों ही तरह का भार पता कर लिया। इसमें चमकीले, धुंधले तारों के साथ-साथ ब्लैक होल का भार भी शामिल था।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि अगर भार, विस्तार और स्थान का पता लगा जाए तो दिखाई ना देनेवाला हिस्सा केवल विशालकाय तारों का अवशेष हो सकता है जिनमें सफेद बौने तारे, न्यूट्रॉन तारे और ब्लैकहोश शामिल हैं। इन तारों की लाशें धीरे-धीरे पास के कम भार वाले तारों की गुरुत्व अंतरक्रियाओं से क्लस्टर के केंद्र में डूबने लगी थी। इस प्रक्रिया को गतिक घर्षण या डायनामिक फ्रिक्शन कहा जाता है। गतिज घर्षण की इस प्रक्रिया में आवेग का आदान प्रदान होता है जिसकी वजह से भारती तारे क्लस्टर के केंद्र में बिखर जाते हैं और कम भार वाले तारे क्लस्टर के किनारे के की ओर चले जाते हैं।

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