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सावन का दूसरा सोमवार आज

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सावन का दूसरा सोमवार आज 


शिवजी का आशीर्वाद पाने के लिए है बेहद खास
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सावन में सोम प्रदोष व्रत का खास संयोग बन रहा है। सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा के लिए खास माना जाता है।

सावन का पावन महीना शुरू हो गया है। इस महीने में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त सावन मास का प्रदोष व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ रखता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 जुलाई को पड़ रही है। इस दिन सोमवार होने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जा रहा है।

सावन सोम प्रदोष व्रत की तिथि 
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सावन में पड़ने वाले सोम प्रदोष व्रत का खास महत्व है। इस बार सावन के दूसरे सोमवार को प्रदोष व्रत पड़ रहा है। ऐसे में इस दिन व्रत रखने से सावन के सोमवार और प्रदोष व्रत का एकसाथ लाभ प्राप्त होगा। सावन का प्रदोष व्रत 25 जुलाई, सोमवार को पड़ने वाला है। इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 17 मिनट से रात 9 बजकर 21 मिनट तक है। इस दिन त्रयोदशी तिथि की शुरुआत शाम 4 बजकर 15 मिनट से हो रही है। जबकि त्रयोदशी तिथि की समाप्ति 26 जुलाई को शाम 6 बजकर 46 मिनट पर होगी।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि 
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प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर शौच-स्नान आदि के निवृत होकर साफ वस्त्र धारण किए जाते हैं। इसके बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। किसी शिवमंदिर में जाकर शिवलिंग पर जंगाजल, दूध या जल से अभिषेक किया जाता है। इसके साथ ही शिव जी को बेलपत्र, फूल, धतूरा, आक के फूल, अक्षत, फल और मिठाई इत्यादि अर्पित किए जाते हैं। प्रदोष व्रत के दिन उपवास रखा जाता है। शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव और मां पर्वती की पूजा के बाद उनकी आरती की जाती है। साथ ही भोलेनाथ को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और मां पार्वती को श्रृंगार की सामग्री अर्पित की जाती है। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है।

सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रतकथा
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सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी।

एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
 
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। 

कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। 

राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

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