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योग: कर्मसु कौशलम् : विश्व-कल्याण के लिये योग - डॉ. पुनीत द्विवेदी

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योग: कर्मसु  कौशलम् : विश्व-कल्याण के लिये योग - डॉ. पुनीत द्विवेदी 

वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव धारण करने वाला यह सनातन धर्म सदा से विश्व कल्याण हित कृतसंकल्पित रहा है। आयुर्वेद से लेकर योग तक प्राणी मात्र के कल्याण के लिये सदियों से अहर्निश सेवा दे रहे हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में समाहित अपार ज्ञान भारतीय समाज के विश्व गुरु होने का प्रमाण है। अनेकों आक्रमण एवं दुराग्रहों के पश्चात भी भारतीय सनातन समाज ने अपने गौरव को संजोये रखा। ऋषि-मुनियों ने वैदिक काल से लेकर अब तक आयुर्वेद एवं योग को समृद्ध किया है। आचार्य चरक, सुश्रुत, महायोगी पतंजलि एवं ऋषि दधीचि की यह तपोभूमि योग और आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ एवं निरोगी समाज की स्थापना करती आई है। आज समूचा विश्व भारतीय योग का लोहा मान रहा है। योग को सबने अपना लिया है। स्वस्थ जीवन के मूल में ही योग है। वैसे भी जीवन में योग का अपना एक अलग ही महात्म्य है। यदि हम बात करें तो सहयोग, संयोग, एवं वियोग आदि शब्दों में भी योग एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। दरअसल, योग का तात्पर्य जोड़ने है। भारतीय सनातन समाज सदा से विश्व को जोड़ने का काम करता आया है। सहयोग की भावना भारतीय समाज के कण-कण में रची-बसी है। यह संयोग की ही बात है कि इस संसार में योग संबंधों को जोड़ने का माध्यम भी बना है। वियोग; योग से दूरी दुख और पीड़ा का कारक बना है। शरीर और आत्मा के मध्य तारतम्यता  हेतु योग अति आवश्यक माध्यम के रूप में जाना जाता है। योग प्राणायाम से  लेकर शारीरिक व्यायाम शरीर में ऊर्जा का निर्माण करते हैं जो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम बनती हैं । ध्यान योग से मन-मस्तिष्क एवं प्राण को वो अजेय शक्तियाँ मिलती है जिसकी खोज में सदियों लग जाते हैं। 

वास्तव में शरीर और आत्मा के संयोजन के लिये योग आवश्यक है। मन के हारे हार है,मन के जीते जीत। मन को सुदृढ़ एवं सात्विक बनाने हेतु योग महती भूमिका निभाता है। मज़बूत मन की मन:स्थिति भी सकारात्मकता से भरी और जीतने वाली होती है। पंचभूतों से बना यह मानव शरीर योग के माध्यम से ही अपने अभीष्ट की सिद्धि कर पाता है। आंतरिक के साथ-साथ वाह्य अर्थात् शरीर को निरोग एवं हृष्ट-पुष्ट करने की ज़िम्मेदारी भी योग की ही है। अत: करें योग-रहें निरोग। मन की एकाग्रता जीवन को बुद्ध बना सकती है। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सर्वसुलभ माध्यम है योग। शरीर-आत्मा और परमात्मा (अजेय शक्ति) के बीच तारतम्यता स्थापित कर  मनुष्य जीवन की सार्थकता को वास्तविक दृष्टि देने का कार्य करता है योग। कोरोना जैसी महामारी में भी योग ने रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास के द्वारा विषाणुओं पर विजय प्राप्त करने की गाथा लिखी है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास में योग-प्राणायाम-व्यायाम के महत्व को अब हर कोई जान गया है। 

अर्थात् , आज समूचे विश्व ने योग के महत्व को समझ लिया है। विगत आठ वर्षों से मनाया जाने वाला ये अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के भाव के साथ विश्व परिवार के कल्याण के लिये अपनी सार्थकता को सिद्ध कर रहा है। भारत सरकार के इस अनूठे और आवश्यक पहल ने निरोगी शरीर के साथ निरोगी विश्व समुदाय की परिकल्पना को मूर्त रूप देने का भगीरथ प्रयास किया है जो वंदनीय है। आईये, योग के महत्व को जन-जन तक पहुँचायें। योग को दिनचर्या में अपनायें। योग जीवन का वह दर्शन है जो अनंत काल से अपनी सार्थकता को सिद्ध करता आया है और भविष्य में भी उतना ही प्रासंगिक रहेगा। यह समय सनातन की देन ‘योग’ पर गर्व करने का समय है। आप सभी को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 

(लेखक: डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक के रूप में कार्यरत हैं।)

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