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अंचल के नन्हे ओर नशे की चुनौती

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अंचल के नन्हे ओर नशे की चुनौती

 एक बीज का अंकुरण जमीन की मिट्टी ,पानी और खाद पर निर्भर करता हैं।वही जब तक पौधे को सुर्य का प्रकाश ना मिले तो उनका भोजन बनना भी सम्भव नही है । तब जाकर पौधा बनता है। प्रकृती  मे कई प्रकार के पौधे होते है जिन्हे अलग अलग वातावरण मिलता है,  जैसे एक वो जो जंगल में बिना  विशेष संरक्षण के प्रकृति के ही पोषण पर पनपते है। वही कुछ उद्धानो और बागानो में  उनका पालन पोषण बेहतर तरीके से होता हैं। निश्चित एक ही बात, बीज से पौधे बनने तक की क्रिया के दो अलग अलग पहलू हैं । 

          बहरहाल हम कहते हैं बच्चे देश का भविष्य हैं,और ये भी सत्य हैं कि हमारा भारतवर्ष गाँव मे बसता हैं लेकिन अब धीरे धीरे चोरी से इन गाँवो में  बचपन  को सेंध लग गयी है। विगत बाइस वर्षो से इन्दौर से झाबुआ निवास करते हुये , ये दो अंतर बच्चो के क्षेत्र मे( शिक्षा , बाल अधिकार व संरक्षण,विधि के विरोध मे बच्चे या किशोरो के क्षेत्र मे )सतत कार्य करते हुये मेने जाना कि वैसे ही जैसे कई पौधे बिना संरक्षण व देखभाल के पल बड जाते हैं वही हाल अंचल के सैकडो बच्चो की समस्या की चुनौती  दे रहा । आज जिस बात को मे यहा रख रही वह है ,"बाल या किशोर व्यसन या नशा "। 

    वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जहा निम्न , माध्यम या उच्च वर्गीय परिवार कही ना कही एक दूषित हवा (जो आज कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है)  अपनी वास्तविक दुनिया से दुर सब कुछ भुला देता हैं। कारण कुछ भी हो सकता हैं कही रोटी की जुगाड खुद करना,कही माता पिता का नजर अंदाज करना व बच्चो को छोड रोजगार के लिए अन्य्ंत्र चले जाना , माता पिता का पैसा कमाने मे इतना व्यस्त हो जाना की नन्हे ने कब अपनी नईदुनिया अन्धेरे मे बना ली पता नही चलता या फिर पैसे का खुमार इस कदर छाया कि  माता पिता ने बच्चे को उसकी मन  माफिक पैसा देते रहे बिना ये जाने की आखिर ये पैसा जा कहा रहा है।

       बच्चो की परवरिश में कमी ही जीवन की कठिन चूनौतियो को जन्म देती है फिर चाहे रोग हो या व्यसन। हर बच्चा चाहे किसी भी वर्ग का हो उसे उचित देख रेख की अत्यंत आवश्यकता होती हैं। मेने अब तक किशोर न्याय अधिनियम के चलते "विधि के विरोध व देख रेख ओर संरक्षण" मे कार्य करते हुये देखा कि दिन ब दिन नशे मे लिप्त बच्चो की संख्या बढती जा रही हैं। एक असीमित सफर कोरोना का कहे तो बाल विकास को चुनौती रहा वही किशोर या बाल मन को एक अंधकार की दिशा मे चुप-चाप खींच रहा । 

      आज के इस डिजिटल टाईम में हर बच्चे कि मुख्य आवश्यकता जहां मोबाइल कई बच्चो का स्टेटस सिम्बॉल बन गया वही कई जगह आर्थिक तंगी के बावजूद भी पलको ने मोबाइल की जुगाड जैसे तैसे की। वही कही महंगे से महंगा मोबाइल नन्हे हाथो की शान बनी। जहा कई असामाजिक तत्व भी मौके की फिराक में यही से इन्हे व्यसन का आदी बनाते गये।  इन नन्हो पर शारिरिक या मानसिकता दोनो तरह से बुरा असर पड रहा ।एक तरफ इस डिजिटल व्यसन ने डिजिटल डिप्रेशन को जन्म दिया वैसे बच्चे ही क्यु यहा तो बडो को भी इस आदत ने अपना लिया। 

         जहा बात रही दस से अट्ठारह वर्ष के बच्चो या किशोरो की तो इनकी दुनिया एक कोने मे सिमट गयी घर के एक कोने में।         

 फ़िलहाल ,जब विधि के विरोध की तरफ बच्चो की बात करे तो लगातार नशे के साथ इनकी संख्या दिनो दिन बढती जा रही है।  चाहे सरकारी स्कूल हो या प्राइवेट सही मायनो मे पचास प्रतिशत से अधिक विद्यार्थी सस्ते से सस्ता या महंगा कई प्रकार के नशे की गिरफ्त में आ चुके है। लम्बे समय तक लेते हुये ये बच्चे अपनी वास्तविक दुनिया से दुर हो जाते है ।हो भी क्यु ना मनुष्य को सबसे ज्यादा हानि इन नशीले केमिकल्स के द्वारा मस्तिष्क में हानिकारक प्रभाव डालती हैं ,परिणाम स्वरूप ना चाहते हुये भी ये नन्हे गलत मार्ग पकड ही लेते है । हाल ही मे कई छोटे अंचल मे  सेक्स रेकेट भी इन्ही कारणों से पनपते जा रहे क्योंकि नशे आवश्यक्ता की पूर्ति के लिये व्यक्ति अब किसी भी हद तक जा रहा वही मौका देखतें गिरोह का ये कब शिकार बन रहे कोई समझ नही पा रहा। 

पुर्व मे भी इस बात को लिख चूंकी हु लेकिन लगातर चुनौती देती कुछ संस्कृति अब कूसंस्कृति मे तब्दील हो गयी जैसे झाबुआ अंचल में "दापा प्रथा"(वधु मूल्य) वही जन्म देता इसे "बाल विवाह " ओर दापे के मूल्य की भरपायी को पुरा करने के लिये इन नन्हो का बाल विवाह कर इन्हे मजदूरी हेतू भेज दिया जाता है। अन्य राज्यो में जहा मुक्त रुप से नशे से लेकर अन्य समाजिक बुराईयों से अपराधीक दुनिया का शिकार होते है ये नन्हे। ईन्हे पता ही नही चलता कब पत्थर तोडते-तोडते बिडी सिगरेट या शराब पीने की लत लग गई वही  शादी विवाह के अवसर पर माता पिता के साथ ये नन्हे भी इनका सेवन्ं करते और शायद इन सबसे बाहर निकालना एक बहुत बडी चुनौती ही होगी ।क्योंकि बात यहा सिर्फ एक संस्कति की या प्रथा की नही वरन वर्तमान पटल की ओर दृश्यंगत कर रही हैं।

      अंचल में कई किशोर अनैतिक समबन्ध मे पडकर बलात्कार जैसे संगीन अपराध फस जाते हैं ओर ना चाहते हुये बाल विवाह के कागार तक पहुच रहे। 

          वही कोरोना की फूँकार ने कई नन्हो को बाल श्रम करने पर मजबुर तो किया ही साथ ही भूख ना लगे इस कारण पाउच व गुटका चबा चबाकर भूख मारते दिखते है ।वही कुछ बच्चे इन्ही शराब की दुकानो(ढाबो ओर नशे की दुकानों) पर अपनी सर्विस देते नजर आ जाएंगे कभी दिन तो कभी रात मे ।अब लड़को की बात अलग है  तो हम चिंतन कर सकते हैं कि लडकियो की क्या स्थिति होती होगी। 

      दिनो दिन बलात्कार के अपराध मे वृद्धि क्या दर्शा रही ? जब अंचल के माता पिता बच्चियो को अपने साथ रख कर भी  को सुरक्षित नही रख पा रहे एक कमजोर (श्रमिक वर्ग) तबका जो आर्थिक  , समाजिक सभी जगह से कमजोर नजर आता हैं वही बच्चे पालन पोषण से वंचित शोषण की जगह बनते जा रहे। हाल ही मे बड़ते बलात्कार के अपराध नशे का बडा कारण रहा है और अधिकाधिक जानकारी से पता चलता है किशोर वर्ग ही इनमे सबसे ज्यादा पाया गया। 

      बड़े शहरो मे विदेशी 'पब' संस्कृति  स्टेटस सिम्बॉल की तरह प्रकट हुई जहा सजी धजी शराब की बॉटल और अन्य नशे हुक्का, शॉट आदि के मध्य किशोर वय सेल्फ़ी लेते या एक अलग दुनिया मैं खोये मिलेंगे ।अब चाहे वहा उच्च वर्गीय परिवार के बच्चे हो या माध्यम वर्ग के  बड़े गेंगस्टर इन्हें गर्त मे डालने का इन्तजार कर रहे होते है ओर मौका मिलते ही अपनी गिरफ्त में लेने से नही चूकते।

  कई जगह भूख रोकने की दवा बनकर तो कयी जगह पैसे का जश्न मनाने का तरीका नशा बन गया है।

 *क्या है जिम्मेदारी हमारी"*

     * माता पिता चाहे पढे लिखे हो या नही अपने नन्हो के दिल से जुडे रहे।उन्हें आर्थिक की बजाय भावनात्मकता की जरुरत ज्यादा है।

* बच्चा या किशोर नशे की गिरफ्त में आ गया है तो जल्द ईलाज जरुरी हैं।साथ ही अपनो का भावनात्मक ओर शारीरिक साथ ना की इन नन्हो के साथ दुर्व्यवहार।

* वही अती आवश्यक है तब जब हम देख रहे अधिकांश बच्चे विधि के विरोध मे संगीन वारदात मे आ रहे ऐसे किशोर या बच्चो के लिये बाल नशा मुक्ति केन्द्र हर जिले मे होना आज की सबसे बडी आवश्यकता हैं जो बिना प्रशासन की जागरूकता के सम्भव नही जितना नशे मे लिप्त होना आसान है वही इससे बाहार निकालना सबसे बडी चुनौती क्युकी "विड्रावल सितर्म्स " (नशे से दुर रखते हुये तलब लगने का समय )  एक बहुत बडी पीढा हैं जहा कयी बार स्किजौफिनिया या दौरे भी आने लगते है जिन्हे बेहतर चिकित्सकीय सुविधा व लगत मार्गदर्शन ना  एक दिन (काऊंसलिंग)  , पोषक आहार ,योगा व मेड़ीटेशन व अंत मे भवीष्य की ओर ध्यान लक्षित करते हुये सकारत्मक मार्ग दिखाना।

* अंततः पाल्को को सौपना जिसमें पालको भी समय समय पर मार्गदर्शीत करना अती आवश्यक हैं जिससे ड्रग एड्डीक्शन -आफ्टर केयर कहते है।

* जरूरी है हर वर्ग की सामजिक जागरुकता चाहे पडोसी का बच्चा हो या अपना या अन्य किसी का उसे देश के अगली पीढी समझते हुये हम सभी का दायित्व बनता हैं सबका बाल नशा मुक्ति को पहचान कर उसे दुर करने के एक जुटता के साथ प्रयास।

* किशोर न्याय अधिनियम के तहत कडाई से पालन प्रशासन द्वारा जरूरी हैं। वही संविधान को मद्देनजर रखते हुए अपराध पर अंकुश भी। जिससे अंचल मे नन्हे सुरक्षित रह सके।

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