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श्रीरामनाम की महिमा

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श्रीरामनाम की महिमा
श्रीरामनाम की महिमा
भगवान् श्रीराम की कथा भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी जानते हैं। इनमें से विरले लोग ही श्रीराम की इस कथा का माहात्म्य जानते हैं। श्रीरामनाम की महिमा जो कुछ जानते भी हैं वह पूर्णत: ठीक से जानते भी नहीं है। श्रीरामनाम की महिमा विस्तृत आकाश से भी करोड़ों गुना बड़ी है। देवो के देव महादेवजी ने भी पार्वतीजी को श्रीरामकथा और श्रीराम के चरित्र के बारे में कहा है-
गिरिजा सुनहु निसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा।।
राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा।।
श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड-५२ (क)।
शिवजी कहते हैं कि- हे गिरिजा! सुनो, मैंने यह उज्ज्वल कथा, जैसी मेरी बुद्धि थी, वैसी कह डाली। श्रीराम के चरित्र सौ करोड़ अथवा अनगिनत अपार है। श्रुति और सरस्वतीजी भी उसका वर्णन नहीं कर सकते। इतना ही नहीं शिवजी के साथ-साथ पार्वतीजी श्रीरामनाम का ही जप करती हैं आगे यह भी कहा गया है-
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
श्रीरामचरितमानस बाल. १०-१
श्रीराम का नाम कल्याण का भवन है और अमंगलों को पराजित (हराने वाला) है, जिसे पार्वतीजी एवं शिवजी सदा जपा करते हैं। ये दोनों जप करते हैं तो दूसरे देवता और मनुष्य श्रीराम का जप करें तो कौन सी बड़ी बात है? रामनाम की महत्ता-महत्व की अत्यन्त ही ख्याति प्राप्त कथा मैंने बचपन में अपने पिताश्री एवं अनेक सन्तों के सत्संग में सुनी थी कि संत कहते हैं कि संसार के सातों महासागरों की यदि दवात (स्याही का पात्र) बना दिया जाए और एक ऊँचे विशाल पर्वत को कलम बनाकर यदि श्रीगणेशजी जैसे शीघ्र समझकर लिखने वाले व्यक्ति द्वारा रामनाम की महिमा लिखने को दी जाए तो वह कभी भी श्रीरामनाम की पूरी पूरी महिमा का वर्णन नहीं कर सकता है। श्रीरामनाम की जीवन में जब पवित्रता होगी, श्रद्धा होगी तब स्वयं हमारे जीवन में यह रामनाम आ जाता है। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है कि-
दोहा- राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहेर हुँ जौं चाहसि उजिआर।।
श्रीरामचरितमानस बाल दोहा-२१
तुलसीदासजी कहते हैं कि यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि-दीपक को रख। श्रीराम जब हमारे हृदय और आचरण में पवित्रता-श्रद्धा होगी तभी श्रीरामनाम के प्रकाश का प्रवेश सम्भव है। अत: हमें अन्दर एवं बाहर की पवित्रता जीवन में रखना चाहिए। श्रीरामनाम की महिमा तथा इस शब्द पर विचार करें तो ज्ञात होगा कि-
आखर मधुर मनोहर दोऊ। बेरन बिलोचन जन जिय जोऊ।।
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहु। लोक लाहु परलोक निबाहू।।
श्रीरामचरितमानस बाल. २०-१
दोनों अक्षर रा और म मधुर तथा मनोहर हैं जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण मात्र करने में सबके लिए सुलभ और सुख देने वाले हैं, इतना ही नहीं जो इस लोक में लाभ और परलोक में भी निर्वाह करते हैं। ये दोनों अक्षर उच्चारण में मधुर और देखने में भी सुन्दर है। सदा स्मरण करने में सबको अत्यन्त ही सुलभ और सुखदायी भी है। रामनाम का प्रभाव इस लोक के साथ ही साथ परलोक तक होता है। श्रीरामनाम की महिमा शिवजी, गणेशजी तथा वाल्मीकिजी ने अच्छी तरह जानी है तथा उनका श्रीराम के साक्षात् अनुभव का अद्भुत प्रभाव भी हुआ है। उन्होंने बताया कि एक श्रीरामनाम भगवान् के लाखों नाम के बराबर है।
श्रीराम के प्रभाव का श्रेष्ठतम उदाहरण हम इस प्रकार देखते हैं-
हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन तीको।
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलू दीन्ह अमी को।।
श्रीरामचरितमानस बाल. १९-४
शिवजी ही नहीं अपितु पार्वतीजी भी पति के वचनानुसार सदा रामनाम का जप किया करती हैं। रामनाम के प्रति पार्वतीजी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर श्रीशिवजी हर्षित हो गए और उन्होंने स्त्रियों में भूषणरूप (पतिव्रताओं में शिरोमणि) पार्वतीजी को अपना आभूषण बना लिया अर्थात् उन्हें अपने अंग (शरीर) में धारण करके अर्धांगिनी बना लिया। इस प्रकार शिवजी रामनाम के प्रभाव को अच्छी तरह जानते हैं। जिस प्रकार के फलस्वरूप समुद्रमंथन में निकला कालकूट जहर ने उनको अमृत का फल दिया अर्थात् कालकूट विष भी अमृत बन गया।
महामन्त्र जोई जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।।
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।।
जान आदिकवि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू।।
सहस नाम सम सुनि सिब बानी। जपि जेईं प्रिय संग भवानी।।
श्रीरामचरितमानस बाल. १९-२-३
रामनाम जो महामन्त्र है जिसे महेश्वर शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को श्रीगणेशजी भी जानते हैं जो इस रामनाम के प्रभाव से सबसे पहले पूजे जाते हैं। आदि कवि वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते थे जो उलटा नाम (मरा-मरा) जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी की वाणी को सुनकर कि एक बार रामनाम सहस्त्रनाम के समान है जो कि पार्वतीजी अपने पति के साथ-साथ रामनाम जप निरन्तर जपती रहती है।
पुनश्च वाल्मीकिजी के बारे में मानस में वर्णित है-
उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।
श्रीरामचरितमानस अयो. १९४-४
जगत जानता है कि उलटा नाम (मरा-मरा) जपते-जपते वाल्मीकिजी ब्रह्म के समान हो गए। श्रीरामनाम की महिमा के बारे में तुलसीदासजी ने पुन: बताया है-
दोहा- ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महं लिय महेस जानि।।
श्रीरामचरितमानस बाल. दो. २५
अपतु अजामिलु गजु गनिराऊ। भए मुकुत हरिनाम प्रभाऊ।।
कहाँ कहाँ लगिनाम बड़ाई।। रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।
श्रीरामचरितमानस बाल. २६-४
श्रीहरि (श्रीराम) नाम के प्रभाव से नीच अजामिल, गज (गजेन्द्र) और गणिका (वेश्या) भी मुक्ति को प्राप्त हुए। तुलसीदासजी कहते हैं कि मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक करूँ राम भी राम के गुणों को गा नहीं सकते। उन्होंने कलियुग के लक्षण बताते हुए हमें इस युग में कैसे रहना है यह भी शिक्षा दी है जिससे हमारे जीवन की उपयोगिता हो सकती है।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।।
कालनेमि कलि कपट निघानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू।।
श्रीरामचरितमानस बाल. २७-४
तुलसीदासजी ने रामनाम के महत्व को बताते हुए कहा है कि कलियुग में न कर्म है न भक्ति और न शान ही है। रामनाम ही एक आधार है। कपट की खान कलयुग रूपी कालनेमि (राक्षस के माने) के लिए रामनाम ही बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमानजी हैं। इस कलयुग के प्रभाव से हम यदि मुक्त होना चाहते हैं तथा संसार सागर से मुक्त होने का भी यह रामनाम मन्त्र ही है।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक आधार राम गुन गाना।।
सब भरोस तजि जो भज रामहि। प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि।।
श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड १०३-०३
कलियुग में न योग और यज्ञ है और न ही ज्ञान ही। रामनाम का गुणगान ही एकमात्र आधार है। अतएव सारे भरोसे (विश्वास को) को त्याग कर जो श्रीरामजी को भजता है और प्रेमसहित उनके गुण समूहों को गाता है वही इस भवसागर से तर जाता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
राम भालु कपि कटकु बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा।
नामु लेत भव सिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं।।
श्रीरामचरितमानस बाल. २५-२
श्रीरामजी ने तो भालु और बन्दरों की सेना इकट्ठी (बटोरी) और समद्र पर पुल बाँधने के लिए थोड़ा भी परिश्रम किया परन्तु रामनाम लेते ही संसार समुद्र सूख जाता है। सज्जन जन मन में विचार कीजिए (दोनों में कौन बड़ा है) श्रीराम के नाम का गुणगान वेद-पुराण और उपनिषद में बहुत ही सुन्दर बताया गया है-
राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा।।
श्रीरामचरितमानस बाल. ४६-१
सन्तों पुराणों और उपनिषदों ने रामनाम के असीम प्रभाव का गान किया है। यही कारण है कि उनके नाम का प्रभाव बताना आसान नहीं है। जब तक ही हम राममय न हो जाए। सन्तों ने भी श्रीराम के चरित्र को बड़ा ही अनुपम बताया है यथा-
राम चरित अति अमित मुनीसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा।।
श्रीरामचरितमानस बाल. १०५-२
महर्षि याज्ञवल्क्यजी ने मुनि भरद्वाजजी से कहा कि हे मुनिश्वर! रामचरित्र अत्यन्त अपार है। सौ करोड़ शेषजी भी उसे नहीं कह सकते। अरण्यकाण्ड में नारदजी ने रामनाम को सबसे बड़ा नाम बताकर कलियुग में मोक्ष प्राप्ति का सरल साधन निरुपित किया है यथा-
यद्यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एकतें एका।।
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउनाथ अधखगगन वधिका।।
श्रीरामचरितमानस अरण्यकाण्ड ४२ (क) ४
यद्यपि प्रभु के अनेकों नाम है और वेद कहते हैं कि वे सब एक से एक बढ़कर है तो भी हे नाथ! रामनाम सब नामों से बढ़कर हों और पाप रूपी पक्षियों के समूह के लिए यह वधिक के समान हो।
लोके नहि स विद्येत यो न राममनुव्रत:।
वा.रा. अयो. ३७-३२
संसार में कोई ऐसा पुरुष नहीं है जो श्रीराम का भक्त न हो।

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