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भारत में समान नागरिक संहिता लागू करना

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भारत में समान नागरिक संहिता लागू करना
अभी हाल ही में जिस प्रकार से आए कार्यपालिका व न्यायपालिका क्षेत्र के निर्देश व आदेशों का अगर हम अध्ययन करें, तो हम यह महसूस करेंगे कि अब वह उचित समय आ गया है कि, भारत में समान नागरिक संहिता लागू करना जरूरी हो गया है, जिसका उल्लेख भारत संविधान में पहले से ही है। भारतीय संविधान अनुच्छेद 44 राज्य नीति के निर्देशकों तथा सिद्धांतों को परिभाषित करता है इसमें समान नागरिक संहिता (UCC) शामिल है। अनुच्छेद 44 में यह उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के लिए देश के पूरे क्षेत्र में एक समान अधिकार हो तथा समान नागरिक संहिता की रक्षा करना राज्य का प्रमुख कर्तव्य है। अभी हाल ही में न्यायपालिकाओं के जिस प्रकार जजमेंट आए हैं उसमें तो यह प्रतीत होता ही है। 25 जनवरी 2021 को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का एक जजमेंट आया जिसमें एक सदस्य बेंच नें चार पृष्ठों के आदेश में कहा कि, मुस्लिम विवाह हो और अदालतों द्वारा विभिन्न निर्णय से जुड़े दस्तावेजों पर भरोसा करते हुए माना कि एक मुस्लिम लड़की का जो 18 वर्ष से कम उम्र की है और यौवन प्राप्त कर चुकी है, वह मुस्लिम पर्सनल ला के अनुसार किसी से भी शादी करने के लिए स्वतंत्र है। इस केस में 36 वर्षीय व्यक्ति और 17 वर्षीय लड़की ने 21 जनवरी 2021 को मुस्लिम संस्कारों व समारोह के अनुसार अपनी शादी की घोषणा की थी। दूसरे जजमेंट में दिनांक 27 जनवरी 2021 को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के सिंगल जज बेंच ने अपने तीन पृष्ठों के आदेश में कहा कि मुस्लिम पुरुष एक से अधिक महिलाओं से बिना तलाक दिए, शादी कर सकता है यह बात महिलाओं पर लागू नहीं होगी। इसके पहले भी अनेक ऐसे फैसले न्यायपालिका से आए हैं और भी अनेक ऐसे मामले हैं जो हिंदू मुस्लिम सिख इसाई इत्यादि अलग-अलग धर्मों के अनुसार होते हैं जबकि भारत में संविधान संघीय ढांचा लागू है और संघीय ढांचे की केंद्र सरकार है। कार्यपालिका,न्यायपालिका में भी अनेक ऐसे निर्देश, दिशानिर्देशों, नियमों, कानूनों,का पालन करते हैं और यह, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह सब लागू कानूनों के आधार पर ही होता है किसी का इसमें कोई व्यक्तिगत हित नहीं होता है। वर्ष 1985 में शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, यह दुख का विषय है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 मृत अक्षर बनकर रह गया है। यह प्रावधानित करता है कि सरकार सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाए। लेकिन इसे बनाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। समान नागरिक संहिता विरोधाभासी विचारों वाले कानूनों के प्रति पृथक्करणीय भाव को समाप्त कर राष्ट्रीय अखंडता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग करेगा।लेकिन अब समय आ गया है कि, देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए जिसके लिए हमें यह समझना जरूरी है कि, यह क्या है समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है..भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी,तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यूनियन सिविल कोडका अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है, जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में,अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' का मूल भावना है। यह किसी भी पंथ जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी। वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करतेहैं।फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्‍छेद 44 के तहत राज्‍य की जिम्‍मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया। इसे लेकर एक बड़ी बहस चलती रही है।क्यों है देश में इस कानून की आवश्यकता - अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलोंका निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं। सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों काध्रुवीकरण नहीं होगा। आजादी के 73 साल बाद भी धर्म के नाम पर भेदभाव जारी है। हमारे संविधाननिर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के माध्यम से भारतीय नागरिक संहिता की कल्पना की थी, ताकि सबको समान अधिकार मिले और देश की एकता व अखंडता मजबूत हो, लेकिन वोटबैंक की राजनीति के कारण यह आज तक लागू नहीं किया जा सका।यदि गोवा में एक समान नागरिक संहिता सबके लिए लागू हो सकती है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक भारतीय नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू हो सकती है? हालांकि, पिछले साल जब केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर राज्य से आर्टिकल 370 खत्म किया था, तबसे UCC को लेकर चर्चा ज़ोरों पर शुरू हुई थी।UCC का मतलब धर्म और वर्ग आदि से ऊपर उठकर पूरे देश में एक समान कानून लागू करने से होता है।UCC लागू हो जाने से पूरे देश में शादी, तलाक, उत्तराधिकार और अडॉप्शन जैसे सामाजिक मुद्दे सभी एक समान कानून के अंतर्गत आ जाते हैं, इसमें धर्म के आधार पर कोई अलग कोर्ट या अलग व्यवस्था नहीं होती।भारत के संविधान के आर्टिल 44 में UCC को लेकर प्रावधान हैं. कहा गया है कि 'राज्य भारत की सीमा के भीतर नागरिकों के लिए UCC की व्यवस्था सुनिश्चित कर सकता है। इस प्रावधान का मकसद धर्म के आधार पर किसी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करना बताया गया है।सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि, यह गौर करना दिलचस्प है कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से जुड़े भाग चार में संविधान के अनुच्छेद 44 में निर्माताओं ने उम्मीद की थी कि राज्य पूरे भारत में समाननागरिक संहिता के लिए प्रयास करेगा. लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अभी तक भारतीय नागरिक संहिता का मसौदा भी तैयार नहीं हो सका है। यही वजह है कि लोगों को इससे होने वाले फायदे के बारे में अब तक पता नहीं चल सका है। इसके लागू नहीं होने से अनेक समस्याएं हैं। उम्मीद है शीघ्र ही सरकार और सभी संबंधित पक्ष मिलकर इस समस्या का हल ही जल्द से जल्द निकालेंगे।

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