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सूर-सारावली की रामकथा

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सूर-सारावली की रामकथा
भारतीय धार्मिक ग्रन्थों में श्रीरामकथा का वर्णन सबसे अधिक पाया जाता है। भारतीय प्रमुख प्रादेशिक भाषाओं में भी श्रीरामकथा वहाँ की क्षेत्रीय वातावरण, संस्कृति एवं वहाँ की मिट्टी की गंध के साथ प्राप्त हो जाती है। श्रीरामकथाओं में प्रमुखत: महर्षि वाल्मीकिजी की रामायण तथा गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित श्रीरामचरितमानस भारत के अधिकांश प्रदेशों में पारायण के रूप में प्रचलित है। भारत के कई प्रदेशों में रामलीला का प्रदर्शन भी होता है। वेदव्यासजी की अध्यात्मरामायण संस्कृत भाषा में है। इसे बिरले लोग ही पारायण करते हैं। इन तीनों रामायणों के ग्रन्थों का आकार तथा सामग्री विस्तृत है। इन तीन रामायणों के साथ ही साथ एक और वाल्मीकीयरामायणान्तर्गत संस्कृत भाषा में ही एक मूलरामायण भी है, इसमें काण्डों का विभाजन नहीं किया गया है तथा इसमें १०० श्लोक है। तुलसीदासजी श्रीरामकाव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं, किन्तु सूरदासजी ने उनके श्रीरामकाव्य की रचना उनसे पहले की है। इस प्रकार जहाँ सूरदासजी को हिन्दी-साहित्य में कृष्ण-काव्य परम्परा के प्रमुख कहा गया है, वहाँ उनको श्रीराम-काव्य के आरम्भिककर्ताओं में एक होने का श्रेय दिया जा सकता है। इस दृष्टि से सूरदासजी के श्रीरामचरित्र चित्रण का पृथक महत्व है।
सूरदासजी हिन्दी साहित्य में कृष्ण काव्य परम्परा के उन्नायक और उसके सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण सम्बन्धी अत्यन्त महत्वपूर्ण काव्य के कारण ही उनका नाम भारतीय साहित्य-भक्ति के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अमर है। यदि इस काव्य का अनुशीलन करें तो ज्ञात होता है कि यह केवल उनका कृष्ण सम्बन्धी रचनाओं तक सीमित नहीं है वरन् इसमें श्रीराम सम्बन्धी रचनाएँ भी हैं। वर्तमान आपाधापी के युग में व्यक्ति भौतिकवाद के भँवर में फँस गया है, वह ईश्वर का नाम लेना चाहता है किन्तु बहुत थोड़े शब्दों तथा चन्द मिनटों में लेकर अपना जीवन सुखी सम्पन्न चाहता है। इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए कि रामायण की कथा अत्यन्त संक्षिप्त में नई पीढ़ी तक पहुँचाई जा सके अत: सूरदासजी की प्रसिद्ध रचना, 'सूर-सारावली की श्रीरामकथा दी जा रही है। इसमें रामायण का अत्यन्त संक्षिप्त में तथा सभी प्रमुख प्रसंगों का उल्लेख है।
सूर-सारावलीकी रामकथा
भूमिका
रावन, कुंभकरन असुराधिप, बढ़े सकल जग माँहिं।
सबहिन लोकपाल उन जीते, कोऊ बाच्यौ नाँहिं॥
सकल देव मिलि जाय पुकारे, चतुरानन के पास।
लै सिव संग चले चतुरानन, छीर-सिंधु सुखबास॥
अस्तुति करि बहु भाँति जगाए, तब जागे निज नाथ।
आज्ञा दई, जाय कपि-कुल मैं, प्रगटौ सब सुर साथ॥
तब ब्रह्मा सबहिन सौं भाष्यौ, सोई सब सुर कीन्हौं।
सातौं दीप जाय कपि-कुल मैं, आय जन्म सुर लीन्हौं।
अपने अंस आप हरि प्रगटे, पुरुषोत्तम निज रूप।
नारायन भुव-भार हरौ है, अति आनंद स्वरूप॥
बासुदेव, यौं कहत बेद मैं, हैं पूरन अवतार।
सेष सहस मुख रटत निरंतर, तऊ न पावत पार॥
सहस-बर्ष लों ध्यान कियौ सिव, रामचरित सुख-सार।
अवगाहन करि कै सब देख्यौ, तऊ न पायौ पार॥
बिती समाधि, सती तब पूछ्यौ, कहौ मरम गुरु ईस!
काकी ध्यान करत उर अंतर, को पूरन जगदीस?
तब सिव कहेउ राम अरु गोबिंद, परम इष्ट इक मेरे।
सहस बर्ष लौं ध्यान करत हौं, राम-कृष्ण सुख केरे।
तामैं राम समाधि करी अब, सहस बर्ष लौं बाम।
अति आनंद मगन मेरौ मन, अँग-अँग पूरन काम॥
दाया करि मोकौं यह कहिये, अपर होहुँ जेहिं भाँति।
मोहि नारदमुनि तत्व बतायौ, तातें जिय अकुलाति॥
तब महादेव कृपा करि कै, यह चरित कियौ बिस्तार।
सो ब्रह्मांड पुरान ब्यास मुनि, कियौ बदन उच्चार॥
मुनि बाल्मीकि कृपा सातौं ऋषि, राम-मंत्र फल पायौ।
उलटौ नाम जपत अघ बीत्यौ, पुनि उपदेस करायौ।
रामचरित बरनन के कारन, बालमीकि-अवतार।
तीनौं लोक भए परिपूरन, रामचरित सुखसार॥
सतकोटी रामायन कीनौ, तऊ न लीन्हौं पार।
कह्यौ बसिष्ट मुनि रामचंद्र सौं रामायन-उच्चार॥
कागभुसुंड गरुड़ सौं भाष्यौ, राम चरित अवतार।
सकल बेद अरु सास्त्र कह्यौ है, रामचंद्र-जस सार॥
कछु संक्षेप 'सूरÓ अब बरनत, लघुमति दुरबल बाल।
यह रसना पावन के कारन, मेटन भव-जंजाल॥
राक्षसराज रावण और कुम्भकर्ण विश्व में प्रबल शक्तिशाली हो गए थे। उन्होंने सभी लोकपालों को जीत लिया था। इनसे कोई भी शेष बचा नहीं था। उस समय सभी देवतागण एकत्रित होकर ब्रह्माजी के पास अपना कष्ट बताने गए। ब्रह्माजी सभी देवताओं एवं शंकरजी सहित भगवान् के निवास क्षीरसागर को चल पड़े। सभी ने वहाँ जाकर अनेक प्रकार से स्तुति करके प्रभु (विष्णु भगवान्) को जगाया। प्रभु ने जागकर सभी से कहा- सब देवता एक साथ जाकर कपियों के कुल में प्रकट हो अर्थात् उस कुल में जन्म लो। यह सुनकर ब्रह्माजी ने यह बात सब देवताओं से कही और सभी देवताओं ने वैसा ही किया। सातों द्वीपों में जितने वानरों के कुल थे उनमें जाकर देवताओं ने जन्म ले लिया। अपने अंशों के साथ पुरुषोत्तम श्रीहरि भी अपने स्वरूप से इस धरा पर प्रकट हुए। उन अत्यन्त आनन्दस्वरूप श्रीनारायण ने पृथ्वी का भार दूर किया। वेदों में उन्हें वासुदेव कहा जाता है, वे पूर्णावतार हैं। शेषजी सहस्रमुख से निरन्तर उनका वर्णन करते हैं फिर भी उनके गुणों का अन्त नहीं होता है। शंकरजी ने सुखदायक श्रीरामचरित का एक सहस्र वर्ष तक ध्यान किया, उसमें अवगाहन करके अर्थात् निमग्न होकर देखा किन्तु इतने पर भी उन्हें भी उसका अंत नहीं मिला। जब शंकरजी की समाधि टूटी तब सतीजी ने पूछा- हे मेरे गुरु शंकरजी! यह रहस्य आप बतलाइए कि आप अपने हृदय में सदा किसका ध्यान कर रहे थे। पूर्ण जगदीश्वर कौन है? तब शंकरजी ने कहा- 'श्रीराम और गोविंदÓ। यही मेरे परम इष्टदेव हैं। मैं एक-एक सहस्र वर्ष तक श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के आनन्दस्वरूप का ही ध्यान करता हूँ। उसमें से देवि! मैं अभी सहस्र वर्ष तक श्रीराम के ध्यान में समाधि लगाए था, इससे मेरा मन अनन्त में निमग्न है मेरे अंग-प्रत्यंग की कामनाएँ पूर्ण हो गई। सतीजी ने श्रीशंकरजी से कहा- दया करके मुझसे यह श्रीरामचरित सुनाइए, जिससे मैं अमर हो जाऊँ। देवर्षि नारदजी ने यह तत्व मुझे बतलाया कि- श्रीरामचरित सुनने से अमरत्व प्राप्त होता है। इसलिए मैं हृदय से बड़ी उत्कण्ठित हो रही हूँ। तब श्रीशंकरजी ने कृपा करके इस श्रीरामचरित का विस्तार से वर्णन किया है। भगवान् व्यासजी ने उसी का पृथ्वी पर पुराणों में अपने मुख से वर्णन किया। सप्तऋषियों की कृपा से महर्षि वाल्मीकिजी ने 'रामÓ यह महामंत्र फलस्वरूप प्राप्त किया। इस रामनाम का उलटा जप करते हुए उन्होंने अपने सब पाप नष्ट कर दिए। फिर उन्होंने श्रीरामचरित का महत्व उपदेश द्वारा बताया। महर्षि वाल्मीकिजी का आविर्भाव (जन्म) ही श्रीरामचरित के वर्णन के लिए हुआ था। उनके द्वारा वर्णन होने पर सुख के साररूप श्रीरामचरित से तीनों लोक परिपूर्ण हो गए। सौ करोड़ श्लोकों वाली रामायण का उन्होंने निर्माण किया तत्पश्चात् भी उन्हें श्रीरामचरित का अन्त नहीं मिला। महर्षि वसिष्ठजी ने भी श्रीरामचन्द्र से ही उनको रामायण का वर्णन कर सुनाया। सभी वेद और शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीरामचन्द्रजी का सुयश ही सबका साररूप है। इसीलिए यह तुच्छ बुद्धि का दुर्बल बालक सूरदास अपनी जिव्हा को पवित्र करने के लिए और संसार का जंजाल मिटाने या समाप्त करने के लिए संक्षिप्त रूप में कुछ श्रीरामचरित का वर्णन करता है।
इस प्रकार सूरदासजी ने मात्र १७ मुक्तकों में सम्पूर्ण रामायण की कथा कह सुनाई। यदि हम सूरदासजी की सूर-सूरावली की रामकथा का पारायण कर लें तो श्रीराम की कृपा हम पर अवश्य हो जाएगी। इसके उपरान्त भी समयाभाव हो तो एक श्लोकी रामायण २४ घंटों में कभी भी चाहे हम स्नान कर रहे हो या कार्यक्षेत्र में हों तब भी बोलकर अपनी नई पीढ़ी को सही दिशा बोध दे सकते हैं। श्रीरामचरितमानस हमारी संस्कृति और धर्म का सबसे बड़ा पवित्र ग्रन्थ है जो हमें जीना सीखाता है।
एक श्लोकी रामायणम्
आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।
बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लंकापुरी दाहनं
पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननमेतद्धि रामायणम्।।
।।एक श्लोकि रामायणं सम्पूर्णम्।।

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