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शिव-साधकों का कल्याणकारी मंत्र

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शिव-साधकों का कल्याणकारी मंत्र
नम: शिवायÓ यह शैव सम्प्रदाय का पवित्र-लोकप्रिय तथा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मन्त्र है। यह भगवान शिव को समर्पित है। इसे पंचाक्षर मन्त्र कहा जाता है। इसमें यदि ú को जोड़ दिया जाए तो यह षड़ाक्षर मन्त्र कहलाता है। शिव की अत्यधिक मनमोहक स्तुति है जिसमें भक्त अपने आराध्य की बड़ी श्रद्धा से स्तुति करता है। समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए शिव पंचाक्षर मन्त्र का जाप किया जाता है। भगवान शिव के गुणों का आराध्य द्वारा स्तवन किया जाता है। अल्प अक्षरों वाला यह मन्त्र मोक्ष और ज्ञान का प्रदाता है और सिद्धि का दाता है।
भगवान शिव संसार के उत्पादक, पालक और संहारक हैं। भक्त के हृदय में स्थित शिव सभी के लिए कल्याणकारी है। शिवोपासक को अपने उपास्य देव के समान ही मत्सरयुक्त नहीं होना चाहिए। सीमित संपत्ति और अल्प परिग्रह से भी यदि शिव की उपासना की जाए तो भी भोले भंडारी प्रसन्न हो जाते हैं।
'महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत्।
एकेन मुक्ति माप्नोति द्वाभ्यां शंभू ऋणी भवेत्।।Ó
शिव पंचाक्षर स्तोत्र, शिवमानसपूजा, शिवाष्टक, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र आदि भी ऐसे स्तोत्र हैं, जिनका भक्तिपूर्वक पाठ करने से मानव जीवन का अत्यधिक कल्याण होता है। कलियुग में तो शिवाराधना सर्वोपरि फल प्रदाता है। 'नम: शिवायÓ तथा 'ú नम: शिवायÓ इस मन्त्र का जाप तो व्यक्ति कभी भी, कहीं भी उठते-बैठते कर सकता है। शिव का सगुण स्वरूप मनोहर है, मोहक है तथा अद्भुत है।
शिव के प्रमुख कार्य हैं सर्वप्रथम सृष्टि का निर्माण, फिर उसका पालन करना और फिर उसका संहार करना। समय-समय पर वे उसमें परिवर्तन भी करते हैं और भक्तों को मोक्ष भी प्रदान करते हैं। शिव साधना में यदि कोई सर्वाधिक प्रभावशाली मन्त्र है तो वह है शिव पंचाक्षर मन्त्र। इस मन्त्र की शक्ति कल्याणकारी है तथा अनादिकाल से यह प्रभावी मन्त्र अपने साधकों को ध्यानावस्थित अवस्था में लाकर आत्मशुद्धि तथा शरीर शुद्धि में सहायक है।
शिव तथा शिवा की सम्मिलित शक्ति से ही कल्याणकारी ऊर्जा का जन्म होता है। आत्मबल का संचार होता है। भक्त की विसंगतियों का नाश होकर मन की शुद्धि होती है। यह पंचाक्षरी मन्त्र भक्त में सन्निहित पाँच तत्त्वों को जाग्रत करने वाला मन्त्र है। इसके पठन-पाठन से साधक को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। इसमें 'úÓ को समाहित कर देने पर यह षड़ाक्षर मन्त्र द्विगुणित फल को प्रदान करता है। यदि रुद्राक्ष की माला से इस मन्त्र का जाप किया जाए तो आशुतोष भगवान शिव समस्त सिद्धियों को प्रदान करते हैं। षड़ाक्षर मन्त्र सभी अशुभ बातों का हरण करता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार भक्त को इसका पाठ करना चाहिए। इसके नियमित पठन से गोदान, तीर्थाटन, गया श्राद्ध आदि पुण्य कार्यों का फल प्राप्त होता है। यही सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला मन्त्र है। कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने भी दीर्घ अवधि तक इस पंचाक्षर मन्त्र का जप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। देवाधिदेव महादेव महान् हैं। हम उनके गुणों के विस्तार को शब्दों में वर्णित नहीं कर सकते हैं। आचार्य पुष्पदन्त ने भी शिवमहिम्न स्तोत्र में लिखा है-
'असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे,
सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानां ईश पारं न याति।।
भगवान शिव ने एक गृहस्थ का जीवन भी जीया है तो संन्यासी का जीवन भी उनकी विशेषता रहा है। शिवजी का जीव भक्तों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। वर्तमान समय बड़ा ही विकट है। अनुशासनहीनता, अराजकता, अनैतिकता आदि सर्वत्र व्याप्त है। मानव जीवन में पाशविक प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। मानवता कराह रही है। मानव जीवन में गुणों का पतन जीवन के हर क्षेत्र में दृष्टिगोचर हो रहा है। आशुतोष शिव ही मानवता की रक्षा का भार ग्रहण कर सकते हैं। समुद्र मंथन के समय भी उन्होंने चौदह रत्नों में निकलने वाले विष का पान कर सभी की रक्षा की और उन्हें नीलकंठ की संज्ञा प्राप्त हुई। यह इस बात का द्योतक है कि कठिन परिस्थिति में भी हमें धैर्य धारण करना चाहिए। सच्चा शिव भक्ति विपरीत स्वभाव वालों से भी मित्रवत् व्यवहार करता है। विषैले सर्प को वे गले लगाते हैं तो भूत पिशाच अर्द्धनग्न अवस्था में विक्षिप्त के समान शिवजी की वर यात्रा में अपनी सहभागिता निभाते हैं। इसीलिए शिवजी को सभी देवतागण सम्माननीय मानते हैं।
शिव परिवार भी सनातन धर्म को निभाने वाला समन्वयवादी रहा है। शिवजी के तीन नेत्र हैं। वे तीसरे नेत्र का उपयोग विरले ही करते हैं। उनका वाहन वृषभ है तो माता पार्वती सिंह पर विराजमान हैं। इनके एक पुत्र गणेशजी मूषक पर सवार हैं तो दूसरे पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है। पिताश्री शिवजी के गले के हार सर्प हैं जो कि विपरीत स्वभावधारी हैं, जन्म से एक-दूसरे के विरोधी हैं। इतनी विषमता होने पर भी सम्पूर्ण परिवार साथ-साथ जीवन व्यतीत करता है। शिवजी अपने शरीर पर भस्म लगाकर और जटाजूट धारण कर सादगीपूर्ण जीवन यापन करते हैं। वर्तमान समय में परिवार भौतिकवाद की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे समय शिव परिवार हमारे लिए एक आशावादी दृष्टिकोण का परिचायक है। शिव के सन्निकट रहने के लिए हमें सर्वदा 'नम: शिवायÓ तथा 'ú नम: शिवायÓ का जप करना चाहिए, जिससे हमें आत्मिक शान्ति का अनुभव होता रहे और हम सुखद जीवन का आनन्द प्राप्त कर सकें-
महादेव महादेव महादेवेति वादिनम्।
वत्सं गौरिव गौरीशो धावन्तमनुधावति।।

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