कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आसन्न खतरे और अंतर्राष्ट्रीय नियामक आयोग की आवश्यकता
ऐसे क्षेत्र जिनका दायरा और कार्य पूरी दुनिया को प्रभावित करते है जैसे हवाई उड़ान मार्ग, समुद्री परिवहन मार्ग, परमाणु शक्ति, इंटरनेट और वेबसाईट, मोबाईल फोन, क्रेडिट कार्ड, बैंकिंग, अंतरिक्ष आदि, उनको प्रभावी और सुरक्षित बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियामक आयोग बनाए जाते हैं जो सुरक्षित और सुचारू परिचालन के लिए नियमन, नियंत्रण और निगरानी व्यवस्था बनाते हैं।
इसी तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता की व्यापक पहुँच और बढ़ती स्वीकार्यता के मद्देनजर एक वैश्विक नियामक आयोग के गठन की मांग उठने लगी है। उल्लेखनीय है कि दुनिया में 500 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जिन्हें डिजिटल नागरिक भी कहा जाता है ऐसे में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सहारे उनकी वित्तीय सुरक्षा, निजता की सुरक्षा और उनकी भौतिक सुरक्षा पर खतरे के डर को लेकर वैश्विक स्तर पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास को नियंत्रित करने की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जाने लगी है।
यह देखा गया है कि एआई तर्क और बुद्धिमत्ता आधारित कामकाज को बेहतर बनाने के लिए तो ठीक है लेकिन जहां निर्णय लेने के लिए मानवीय संवेदनाओं, सूझबूझ आदि की आवश्यकता होती है वहाँ एआई का मनमाना उपयोग खतरनाक सिद्ध हो सकता है। एआई के लिए विनियामक और नीति निर्धारण की कमी वैश्विक न्यायालयों में एक उभरता हुआ मुद्दा है। पूरी तरह से अनियंत्रित एआई को अपनाने के जोखिम हमारी सोच से कहीं अधिक हैं, इसका पूर्णत: उन्नत रूप मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकने में सक्षम हो सकता है। उत्तम किस्म के शक्तिशाली एआई सिस्टम को तभी बनाया जाए, जब हम आश्वस्त हो जाएं कि उसके नकारात्मक पहलू को नियंत्रित कर केवल सकारात्मक असर ही समाज पर पड़ेगा। मानव बुद्धिमत्ता के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले एआई मानवता और समाज के लिए कई जाने पहचाने और अनजाने खतरों को जन्म दे सकते हैं।
व्यापक डिजिटल बदलाव के चलते दुनिया भरोसेमंद एआई को अपनाने को तैयार हो रही है और अब तक सामने आए एआई के प्रयोगों ने लोगों का भरोसा जीता है । आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए एआई एक बेहद सशक्त औजार के रूप में अपनी उपयोगिता स्थापित कर चुका है। विभिन्न क्षेत्रों में एआई की बढ़ती पैठ और उपयोगिता के चलते माना जा रहा है कि 2023 के अंत तक एआई क्षेत्र में कुल वैश्विक निवेश 300 अरब डॉलर के पार निकाल जाएगा, और 2030 तक वैश्विक जीडीपी में एआई का योगदान लगभग 16 ट्रिलियन डॉलर होगा । आज के समय में एआई पर शोध करने वाली प्रयोगशालाएं कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं अतः इतनी अहम तकनीक का निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए दुरुपयोग ना हो इसलिए एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक आयोग का होना बेहद जरूरी है।
वैश्विक पटल पर विकसित देशों ने पहले से ही इस बारे में सोच विचार कर काम करना शुरू कर दिया है अमेरिका अपने मौजूदा कानूनों का उपयोग कर रहा है और जरूरत अनुसार इन्हे और भी सख्त बनाने की योजना पर काम कर रहा है, चीन में एआई को नियंत्रित रखने के बारे में मसौदा तैयार हो रहा है, ब्रिटेन में एआई प्राधिकरण नया दिशानिर्देश तैयार करेगा और उपभोक्ताओं तथा व्यवसायों पर इसके प्रभाव की जांच करेगा, इजरायल ने एआई नीति पर प्रस्तावित मसौदा प्रकाशित किया और विभागों से जानकारी मांगी गई है, इटली ने एआई प्लेटफॉर्म की समीक्षा करने और विशेषज्ञ नियुक्ति की योजना बनाई गई है, भारत ने भी जल्द ही नीती निर्माण की घोषणा की है। अन्य देश भी इस बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
2023 के अंत तक इसके एक वैश्विक नियामक का आकार लेने की प्रबल संभावना है जो संभावित ज़ोखिमों का अध्ययन कर एक जिम्मेदार कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए विस्तृत नैतिक सिद्धांतों का प्रस्ताव रखेगा और प्रभावी निगरानी हेतु एक सतत-परिवर्तनशील दृष्टिकोण मुहैया कराएगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने एआई से संबंधित गतिविधियों की निगरानी के लिए लंदन में मुख्यालय बनाने का प्रस्ताव रखा है। इन सब प्रयासों के बावजूद आसन्न चिंता यह है कि एआई जैसी विस्तृत और व्यापक तकनीक के नियमन की सभी जरूरतों के लिए एक समाधान वाला दृष्टिकोण प्रभावी नहीं होगा।
एआई नियमन के बारे में भारत का मानना है कि सुझाये गये नियामक हस्तक्षेप विभिन्न उपयोग के लिए अलग-अलग एआई के डिजाइन, विकास और उनकी तैनाती से जुड़े ज़ोखिमों के आकार, प्रकृति और संभावना के अनुरूप प्रतिक्रिया देंगे। इस दृष्टिकोण के लिए बुनियादी सिद्धांत इस प्रकार है, ‘नुक़सान पहुंचने की संभावना जितनी ज्यादा होगी, नियामकीय आवश्यकताएं उतनी सख्त होंगी और नियामकीय हस्तक्षेप की सीमाएं भी उतनी ही दूरगामी होंगी.’ जहां नुकसान का ज़ोखिम कम है वहां स्व-नियमन लागू किया जायेगा. जबकि, जहां नुकसान का ज़ोखिम बड़ा है वहां क़ानूनी हस्तक्षेप प्रस्तावित किया गया है। यूरोपीय संघ जैसे दूसरे अधिकार क्षेत्रों ने भी इसी तरह का ज़ोखिम-आधारित दृष्टिकोण अपनाया है और बहुस्तरीय ज़ोखिम पैमाना, अस्वीकार्य ज़ोखिम, उच्च ज़ोखिम, सीमित ज़ोखिम और न्यूनतम ज़ोखिम बनाया है। आत्म-नियमन और सरकार-नीत नियमन का सावधानी पूर्ण तालमेल और संयोजन एआई उद्योग जगत को यह बड़ा मौका देता है कि वह आगे आये और सिद्धांतों और सदंर्भगत आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यपद्धति विकसित करते हुए ज़रूरत से ज्यादा तगड़े नियमन से बच सके।
राजकुमार जैन, ख्यात लेखक और स्वतंत्र विचारक