बेरोजगारी एवं श्रम की गरिमा

दिनांक 01.03.2023 प्रमुख समाचार पत्र हिन्दुस्तान टाइम्स, दिल्ली ने एक खबर प्रकाशित कि ,कॉलेज में पढ़े-लिखे युवा उच्च बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण कहता है कि 1/3 युवा स्नातक बेरोजगार हैं। यह दुखद परिदृश्य हमारे अव्यवस्थित शिक्षा पाठ्यक्रम का परिणाम है।
वर्तमान समय की शिक्षा युवाओं को स्कूल/कॉलेज की परिधि के बाहर जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं करती है। जैसा कि मैं देखता हूं कि लोग ज्ञान हासिल करने के लिए लाखों-करोड़ों खर्च करते हैं और प्रमाण पत्र प्राप्त करते हैं कि उनके पास ज्ञान है। लेकिन जब दोनों समय के भोजन को पूरा करने की बात आती है, तो वे बुरी तरह विफल हो जाते हैं। उनमें से अधिकांश रोजगार पाने के लिए कतार में खड़े हैं या बेरोजगार हैं । अपने परिवार और समाज पर बोझ बने हुए हैं, जो बहुत ही दुखद स्थिति है। यदि माता-पिता, शिक्षाविद्, नौकरशाह और राजनीतिक नेतृत्व विद्यार्थियों को उनकी क्षमता, दृष्टिकोण और जुनून के अनुसार पढ़ाने के महत्व को समझे, तो युवाओं और युवतियों की यह दुखद स्थिति और माता-पिता की चिंता को मिटाया जा सकता है।
जब मैं अपने अतीत की और पीछे मुड़कर देखता हूं तो पाता हूँ कि मेरे पिताजी को वर्णमाला और गणित का बुनियादी ज्ञान था। व्यापार के लिए पूंजी प्राप्त करने के लिए उन्होंने खुद को एक वर्ष के लिए नियोजित किया और उसमें वह सफल हुए। उन्होंने अपने पांच पुत्रों और तीन पुत्रियों सहित हम आठ आश्रितो का भरण-पोषण किया। दो किलो सोने की कीमत का हिस्सा दिया, जिसकी वर्तमान कीमत करीब एक करोड़ है।गुजरे जमाने के किसी भी उद्योगपति को देखिए, कोई भी नाम लीजिए, उनके पास कोई डिग्री या सर्टिफिकेट ऑफ नॉलेज नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे विकसित किया। इसलिए आज के अभिभावकों और शिक्षण संस्थानों को मेरा विनम्र सुझाव है कि कृपया विद्यार्थियों को अपने ज्ञान का उपयोग करने के लिए तैयार करें । ताकि जीवन में परिस्थितियों का सामना और जीवनयापन करसके ।
अपने परिवार की देखभाल और समाज की उन्नति में योगदान देंसके । सामान्य रूप में एक बार जब वे स्कूलों/कॉलेजों से बाहर हो जाते हैं तो उन्हें खुद को स्वतंत्र रूप से रोजगार में नियोजित होना चाहिए। उन्हें किसी भी काम को करने में किसी प्रकार की झिझक या संकोच नहीं करना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए श्रम की गरिमा आवश्यक है।