महागठबंधन करके हराना है बनाम 9 वर्षों का लेखा-जोखा बताना है
2024 की चुनौतियों पर मंथन - विपक्ष का मिशन बंधन - क्या बन पाएगा महागठबंधन ?
विपक्ष का महागठबंधन 1977 के इतिहास को दोहराने में सक्षम - फैसला जनता जनार्दन के हाथ - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर पिछले करीब एक दशक से भारत की प्रतिष्ठा प्रतिभा वज़न और कद काफी अधिक बड़ा है इसमें कोई दो राय नहीं है! क्योंकि इस पड़ाव में भारत ने रिकॉर्ड तोड़ विकास नए-नए आयामों की उपलब्धि की गाथाएं लिखी है, परंतु यह जो राजनीति है वह अच्छे अच्छों के पल्ले नहीं पड़ती, कुर्सी का मोह हर राजनेता को होता है ऐसा माना जाता है कि उसके सामने सब कुछ छोटा हो जाता है, क्योंकि अभी भारत में 2024 का फाइनल और 2023 के अंत में राज्य चुनाव के रूप में सेमीफाइनल का आगाज़ हो रहा है। इसलिए बीते कुछ महीनों से हर राजनीतिक दलों में इंटर और आउटर दौर में मंथन चल रहा है। खूब मिलन गठबंधन हो रहे हैं जिसे हम दो भागों में चर्चा कर सकते हैं एक महागठबंधन करने करके हराना है, दूसरा 9 वर्षों का लेखा-जोखा बताना है। एक तरफ 2024 की चुनौतियों पर मंथन तो विपक्ष का मिशन बंधन जिसकी अभी तीसरी तारीख 23 जून 2023 फाइनल हुई है। जिस तरह रूलिंग पार्टी को 450 सीटों पर जोरदार टक्कर देने का फार्मूला महागठबंधन के हसते तैयार किया जा रहा है क्योंकि सत्ताधारी पार्टी को पिछले2019 के चुनाव में केवल 37 प्रतिशत वोट ही मिला था इसलिए अब 1977 के इतिहास को दोहराना कोई मुश्किल काम नहीं है जिसमें विपक्ष की जीत हुई थी और जनता पार्टी की सरकार बनी थी। परंतु आज एक रैली में पहलवान द्वारा बोला गया उसको भी याद रखना होगा जो रामायण और ग्रंथों में भी आया है, क्या होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा। क्योंकि फैसला जनता जनार्दन के हाथों में है वह चाहे तो गठबंधन कोमहागठबंधन को ताज पहना सकती है या जमीदरोज़ भी कर सकती हैं क्योंकि कुछ महीनों से महागठबंधन और 9 वर्षों पर चर्चाएं बैठकें वेबीनार हो रहे हैं। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे महागठबंधन करके हराना है बनाम 9 वर्षों का लेखा-जोखा बताना है।
साथियों बात अगर हम महागठबंधन बनाम 9 वर्षों की करें तो, बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को विपक्ष की कई राजनीतिक दलों की महाबैठक होने वाली है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाने के लिए देश के कई राजनीतिक दिग्गजों का वहां जमावड़ा लगेगा.। ये बैठक पहले 19 मई और फिर 12 जून को होने वाली थी, लेकिन सभी दलों के शीर्ष नेता के मौजूद नहीं होने के कारण इसे टाल दिया गया था। लेकिन 23 जून को लेकर सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने अपनी सहमति दे दी है।
जनता दल युनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्षने कहा है,कांग्रेस पार्टी से अध्यक्ष और युवा नेता ने इस बैठक में शामिल होने को लेकर सहमति जताई है। इसके साथ ही टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की सीएम, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख और झारखंड के सीएम, शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख, डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के सीएम, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के सीएम, सीपीआई के सचिव, सीपीएम, माले के सचिव ने भी मीटिंग में शामिल होने की सहमति दे दी है। विपक्षी एकता के लिए विभिन्न विपक्षी दलों का जमावड़ा बिहार सीएम की अगुवाई में 12 जून को पटना में होते होते रह गया। अब यह बैठक 23 जून को होगी। 12 जून को पटना में होने वाली बैठक के लिए सभी दलों की सहमति थी, पर युवक नेता का अमेरिकी दौरा और अध्यक्ष की ना नुकुर ने विपक्षी एकता की बैठक को खतरे में डाल दिया था। अब बिहार सीएम एक बार नए सिरे से विपक्षी एकता की कोशिश कर रहे हैं। जिसमें वे सफल भी दिखाई दे रहे हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव सिरपर है। ऐसे में अगर सभी विपक्षी दल एक होकर भाजपा और मोदी को टक्कर देंगे, तो भाजपा के लिए परेशानी हो सकती है। इसका इशारा आरएसएस ने भी किया है। वैसे विपक्षी एकता में लगातार चुनौतियां दिख रही हैं। क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों के साथ चुनावलड़कर अपना अस्तित्व बचाने की फिक्र में हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम किसी दूसरे दल को पश्चिम बंगाल में घुसपैठ करने देने के बारे में बहुत सतर्क हैं।
वह कांग्रेस, वामपंथी दलों के साथ सीटों का बंटवारा न करने का संकल्प ले चुकी हैं। सीएम, सीपीएम, सीपीआई, कांग्रेस के साथ पश्चिम बंगाल में कोई गठबंधन नहीं चाहती हैं। वह अकेले ही भाजपा से टक्कर लेना चाहती हैं। उनके अनुसार वह विपक्ष की नेता बनने की हर योग्यता रखती हैं। दिक्कत यह है कि विपक्ष का कोई बड़ा नेता उनके नाम पर सहमत नहीं है। सीएम को यह बात खलती है कि विपक्षी एकता की सब बात करते हैं, पर कोई उनके नाम पर मुहर नहीं लगा रहा है। विपक्षी एकता पर आशान्वित बिहार सीएम को विपक्षी दलों द्वारा बार-बार दिए जा रहे झटकों ने चिन्ता में डाल दिया है। आम चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एक करने की कवायद जितनी तेजी से शुरू होती है, उसी स्पीड से हर कोशिश दरकती चली जाती है। विपक्षी एकता के रास्ते में अभी और अड़चनें आएंगी। बिहार सीएम अपनी मुहिम में कामयाब होंगे, ऐसा उनका विश्वास है। विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा विभिन्न दलों के नेताओं का अहम है। सभी दल के लोग विपक्षी एकता से ज्यादा अपना-अपना भविष्य देख रहे हैं। कुछ दलों को गठबंधन करने पर अपना अस्तित्व ही संकट में लग रहा है। शुरू से ही ये दल एक दूसरे को नीचा दिखाते रहे हैं। गठबंधन करके लड़ने पर दल ही दलदल में न समा जाए, ऐसी चिंता छोटे दलों को खाए जा रही है। विपक्षी दलों के साथ सबसे बड़ी विडम्बना है कि यह दल एक दूसरे पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। बिहार सीएम जिस उत्साह से विपक्ष को एकजुट करने को आगे आए हैं, वह कहीं से कम होती नहीं दिख रही है।
साथियों बात अगर हम सत्ता पक्ष पार्टी द्वारा महागठबंधन पर तंज कसने की करें तो, पहला, औरंगाबाद के बीजेपी सांसद ने विपक्ष पर तंज कंसते हुए कहा कि बिहार के महागठबंधन समेत देश के समूचे विपक्ष ने विधवा विलाप करने के लिए बड़ा अच्छा दिन चुना है। 23 जून को अंर्तराष्ट्रीय विधवा दिवस है। इस दिन ये लोग बैठक विधवाओं पर चर्चा करने के लिए नही कर रहे है। बल्कि बैठक में विपक्षी एकता के नाम पर भाजपा और पीएम को कोसेंगे। यह उस दिनउनका विधवा विलाप ही होगा। इनके पास और कोई एजेंडा तो है नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि जिसके पास 40 एमपी नहीं वह पीएम बनने का सपना देख रहा है। दूसरा, यह बात अलग है कि मुसलमान हितों के लिए चिंतित रहने वाले विपक्षी नेताओं ने बैठक की नई तारीख तय करते समय उनके (इस्लामी) नजरिए का भी ख्याल नहीं रखा। इस्लाम में 3, 13 और 23 अंक अशुभ माने जाते हैं। यानी इस्लामी नजरिए से 23 जून की बैठक शुभ नहीं हो सकती। इस्लाम में शादी-ब्याह या कोई भी शुभ काम तीन तिथियों पर नहीं होते। कोई इस नई तारीख को लेकर भी बवाल खड़ा कर दे या बैठक में शामिल होने से इनकार कर दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
साथियों बात अगर हम विपक्ष के महागठबंधन में सीटों के गणित की करें तो, लोकसभा की 450 सीटों पर बीजेपी को सीधे टक्कर देने की तैयारी है। इनमें महाराष्ट्र की 48, पश्चिम बंगाल 42, बिहार की 40, तमिलनाडु की 39, कर्नाटक की 28, राजस्थान की 25, गुजरात की 26 सीट भी शामिल हैं। बिहार सीएम जिन पार्टियों को गठबंधन में शामिल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, 2019 में उन सभी पार्टियों का वोट परसेंट करीब 45 फीसदी था। 2019 के चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली बीजेपी का वोट परसेंट सिर्फ 37 फीसदी था। अगर बीजेपी वर्सेज एकजुट विपक्ष में सीधा मुकाबला हुआ और विपक्ष के पक्ष में वोट ट्रांसफर आसानी से हो गया तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ जाएगी।
साथियों बात अगर हम सत्ता पक्ष के 9 वर्षों की उपलब्धियों को गिनाने की करें तो हर मंत्रालय द्वारा अपने अपने स्तर पर बैठकों वेबीनारों सभाएं लेकर पिछले 9 वर्षों का विकास उपलब्धियों और सुशासन को गिना रहे हैं अब नतीजा जनता जनार्दन के हाथों से वक्त बताएगा क्योंकि, ए बाबू ये तो पब्लिक है ये तो सब जानती है ये तो पब्लिक है।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि महागठबंधन करके हराना है बनाम 9 वर्षों का लेखा-जोखा बताना है।2024 की चुनौतियों पर मंथन - विपक्ष का मिशन बंधन - क्या बन पाएगा महागठबंधन ? विपक्ष का महागठबंधन 1977 के इतिहास को दोहराने में सक्षम - फैसला जनता जनार्दन के हाथ में है।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र