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सेहत का खजाना है मोटा अनाज

लेखक राजकुमार बरूआ भोपाल 
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लेखक राजकुमार बरूआ भोपाल 

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।
निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।

हम भारतीयों की जीवन शैली को पूरे विश्व में माना गया है,और अपनाया भी गया है, हमारे यहां बरसों से ही जीवन के लिए जरूरी मूल्यों उद्देश्यों और परंपराओं के अनुरूप जीवन जीने की कला को सिखाया गया है यह हमारे खून में ही रचा-वसा हुआ है, हमारे यहां हर मौसम के अनुरूप तीज और त्योहार आते हैं उन त्योहारों का उद्देश्य हमारे जीवन को उत्साह से भर देना और मौसम के हिसाब से अपने खानपान को संतुलित करना ही होता है। हमारे यहां तो एक कहावत भी है 'जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन' वर्तमान समय की दौड़-धूप ने जीवन को असंतुलित कर दिया है और इसकी एक मुख्य वजह खान-पान भी है जो समय पर ना हो और शुध्द ना हो तो विष भी हो जाता है।


२०२३ को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया है।भारत के इस प्रस्ताव का ७० से अधिक देशों ने समर्थन किया है, 'श्री अन्न योजना', इस योजना के तहत सरकार किसानों को मोटे अनाज की उपज के लिए आर्थिक और कृषि संबंधित मदद देगी। भारत दुनिया में मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, हमारे यहां बरसों से मोटे अनाज के महत्व को पहचान कर उनको भोजन के साथ औषधि के रूप में भी अपनाया गया है, मोटे अनाज मैं मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा, रागी,सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू हैं। जो हमारे यहां प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,  जो खाने में स्वाद और सेहत का खजाना होता है हम बरसों से इसका उपयोग कर रहे हैं और अपने आप को स्वस्थ रखे हुए हैं और जब हम स्वास्थ्य की बात करते हैं तो इसमें स्वास्थ मन का होना अति आवश्यक है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में कुछ किसान आजकल फसलों को जल्दी पकाने के लिए या उसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए अत्यधिक रसायनों का उपयोग कर रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है। फसले खाद के कारण पौष्टिकता खो रही है। 'रेडी टू ईट' सुविधाजनक खाद्य पदार्थ परंपरागत व प्राकृतिक खाद्य पदार्थों की जगह ले रहे हैं, कंपनियां लाभ के लिए काम करती हैं अपनी मनमानी के चलते वहां गुणवत्ता पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती हैं

उन्हें अपने मुनाफे से ही मतलब है, उपभोक्ता के सेहत से उनका कोई सरोकार नहीं होता। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ कम गुणवत्ता वाले पोषक तत्वों से बनाए जाते हैं खाद्य संरचना को नष्ट करते हुए यह प्रसंस्कृत किए जाते हैं और इस प्रक्रिया में खाने से रेशे निकल जाते हैं किसके लिए प्रयुक्त प्लास्टिक के पैकेटों में रसायनों,कलरों,फ्लेवर का उपयोग किया जाता है इन सभी के कारण स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएं पैदा होती हैं। कंपनियों की इस मनमानी पर सरकार भी कोई प्रभावी कदम नहीं उठाती है जिसके कारण कंपनियां अपने ब्राह्मक प्रचार मैं उपभोक्ताओं को उलझा कर खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता की बात को छुपा कर पश्चिमी देशों के अपनाए हुए रहन-सहन को प्रमुखता से दर्शा कर उन्हें पौष्टिकता से ज्यादा स्वाद पर जोर देते हुए कई केमिकल युक्त भोजन को परोस रहे हैं। खाद नियामक प्राधिकरण होते हुए भी ना होने के बराबर है त्योहारों के सीजन में भी खाद्य पदार्थों का सैंपल लेने के बाद भी महीनों उसकी जांच ना हो पाती है और लोगों को अशुद्ध खाद्य पदार्थ लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है,सरकार को इस ओर बहुत ठोस कदम उठाने की जरूरत है‌। और एक बहुत ही शक्तिशाली मापदंड बनाकर लोगों को सेहतमंद रखने की आवश्यकता है, मजबूत भारत स्वास्थ भारत की ओर बढ़ने पर काम करना चाहिए। एक बहुत ही जरूरी और सही दिशा में उठाया गया कदम '२०२३ को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष' घोषित करना और जनमानस को अनाज के महत्व के साथ अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना है।

मोटा अनाज कई मामलों में स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी और बीमारियों से दूर रखने में मदद करता है मोटे अनाज में फाइबर की अधिक मात्रा होने के कारण यह पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में भी सहायक होता है मोटापे से ग्रसित लोगों के लिए मोटा अनाज एक वरदान है फाइबर,प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट,फैट इन सब तत्वों को मिलाकर एक पौष्टिक खाद्य पदार्थ बनता हैं,

मोटा अनाज कम सिंचाई वाला अनाज या कम नमी वाला अनाज होता है। डॉक्टर एम एन सावले बताते हैं कि आप भोजन को सही रूप और समय पर लेने से कई रोगों से मुक्त हो सकते हैं डॉ सावले के अनुसार आदमी खाने से बीमार होता है नहीं खाने से नहीं, कई परिस्थितियों में आप भूखा रहकर भी कुछ रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। भारत इन दिनों सामाजिक रूप से फैलने वाले संक्रमण रोगों से संबंधित स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, मोटापा डायबिटीज, उच्च रक्तचाप,कैंसर,किडनी और हृदय रोग, इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है सरकार के लिए एक अवसर हैं कि ऐसा कदम उठाए जिससे देश की कुल आबादी लाभान्वित हो। सरकार द्वारा जनता को विश्वसनीय जानकारी देना कौनसा खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा है और क्यों इसकी जानकारी देना, पैकिटो पर दी जाने वाली पोषक तत्वों की जानकारी को गौर से पढ़ना सीखें जो छोटे अक्षरों में छपी होती है। अपने परंपरागत भोजन की ओर लौटे सही समय पर भोजन करें पानी का अधिक से अधिक उपयोग करें और पैकेट वाले भोजन से बचें।

जहां तक हो सके आपके आसपास के बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों को लाएं और उसको सही मात्रा में और सही विधि से बना कर खाएं इसमें गेहूं का आटा भी मुख्य है मल्टीग्रेन आटे से बचें, अपने पास की चक्की पर जाकर ताजा पिसा हुआ आटा लाएं और उसे ही खाने की अपनी आदत बनाएं। कंपनियों पर निर्भरता कम करें, और अपने आजू-बाजू के दुकानदारों से अच्छा और ताजा सामान लेकर उसका उपयोग करें और अपने को और अपने बच्चों को और अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वास्थ समाज दें जिससे भारत शारीरिक और मानसिक रूप से भी मजबूत हो, बीमारियों से दूर हो बीमारी पर होने वाले खर्चों से बचा जा सके जिससे आप की आर्थिक स्थिति मजबूत हो, और एक सामाजिक जनचेतना के द्वारा लोगों को मोटे अनाज का लाभ और भारतीय परंपरागत अनाज का महत्व बताकर एक स्वास्थ और मजबूत भारत का निर्माण करें। कंपनियां मोटे अनाज की लोकप्रियता बढ़ाने के अभियान को सफल बनाने का बीड़ा उठा सकती है और इसे मुख्यधारा का अनाज बना सकती हैं, इसी कड़ी में बीकानेर कैमल मिल्क, एनआरसीसी ने मोटे अनाज से रेडी टू ईट फूड तैयार किया है।

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