मुकेश और रीना दोनों ने करीब एक वर्ष पूर्व सीएससी सेंटर की शुरुआत की थी। जो आज एक मिनी बैंक की तरह कार्य कर रहा है।
कठिन और लंबे रास्ते हमेशा मंजिल तक पहुचाने में मददगार साबित होते हैं। भगवानपुरा जनपद में सुखपुरी गांव के पति-पत्नी ने भी करीब 1 वर्ष पूर्व कठिन और लंबा रास्ता ही चुना था। जो आज सफलता की मंजिल तक पहुँच रहा है। सुखपुरी वैसे तो किसानों और मजदूरों की बस्ती है। इस बस्ती के 10 किमी. के दायरे में डिजिटल लेनदेन और बैंक तथा व्यक्ति के दस्तावेजों की पूर्ति करने का साधन नहीं है। आयुष्मान कार्ड भी बनवाना है तो 10 किमी. धुलकोट जाना पड़ेगा। मजदूरों को भी अपनी मजदूरी की राशि निकालने के लिए बैंक में जाकर घंटों लाइन में लगना पड़ेगा। मगर अब सुखपुरी की स्थिति पति-पत्नी ने मिलकर बदल दी है। बैंक के कुछ काम हो तो फटाफट सीएससी के माध्यम से हो जाते हैं। साथ ही शासन की योजनाओं में ऑनलाइन आवेदन करने जैसी सुविधा लगभग 300 घरों वाले गांव में हो गई है। मुकेश और रीना दोनों ने करीब एक वर्ष पूर्व सीएससी सेंटर की शुरुआत की थी। जो आज एक मिनी बैंक की तरह कार्य कर रहा है।
शादी के बाद पत्नी को पढ़ाने में रुचि दिखाई
मुकेश कक्षा 12 पास करने के बाद खेती और मजदूरी के कार्य करता था। लेकिन शादी के बाद पत्नी रीना ब्राम्हणे ने गांव के दुर्गा स्व सहायता समूह से 1 लाख का लोन लिया। वो स्नातक कर चुकी थी और कंप्यूटर का काम भी थोड़ा बहुत जानती थी। मुकेश ने उनहें आगे की पढ़ाई के लिए एमएसडब्ल्यू से प्रवेश दिया था। 2020-21 में बैंक ऑफ इण्डिया की प्रशिक्षण संस्था आरसेटी से प्रशिक्षण के बाद समूह से राशि निकाली। इस राशि से लेपटॉप, स्मार्ट मोबाईल, दो प्रिंटर सह फोटोकॉपी मशीन और लेमिनेशन मशीन खरीदी धीरे-धीरे गांव वाले के काम गांव में ही होने लगे। अब यहां वृदावस्था पेंशन के अलावा मजदूरी का भुगतान, सभी पेंशन, पीएम आवास, पीएम किसान और बैंक खाते खुलवाने का कार्य बड़ी सुगमता से होने लगा। रीना बताती है कि अब वो एमएसडब्ल्यू के फाइनल में है। उनके पति ने पढ़ने का अवसर दिया। इस कार्य में अब पति भी हाथ बटाने लगा है। रीना प्रतिमाह 200 से 250 ट्रांसेक्शन आराम से कर देती है। हालांकि इससे राशि कम मिलती है लेकिन काम की संतुष्टि ज्यादा है। दोनों पति पत्नी मिलकर प्रतिमाह 8 से 10 हजार रुपये तक काम पा रहे है।