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हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती का मतलब बिना खेत और मिट्टी के की जाने वाली खेती है। इस तकनीक में पौधे को लगाने से लेकर विकास तक के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है।

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आमतौर पर युवा आईटी कंपनी और मेट्रो शहरों में नौकरी तलाशते हैं, लेकिन रतलाम के रियावन गांव के दो युवा किसानों ने खेती को अपनाकर उसे लाभ का धंधा बना लिया। रियावन के धाकड़ ब्रदर्स अरविंद और रविंद्र ने प्राइवेट नौकरी नहीं करते हुए खेती को अपना कॅरियर चुना। दोनों ने खेत पर ही हाइड्रोपोनिक तकनीक का प्रशिक्षण केंद्र और हाईटेक नर्सरी बनाकर अपना खुद का एग्रीकल्चर बिजनेस खड़ा कर दिया है। भाइयों की जोड़ी में अरविंद धाकड़ ने बीकॉम ग्रेजुएट होने के बाद खेती को चुना।

छोटे भाई रविंद्र ने एमएससी लाइफ साइंस से पोस्ट ग्रेजुएट होने के बाद अमेरिका की अलवेयरलो, सिलो और एगसेट्रा एग्री टेक्नोलॉजी कंपनियों के साथ यूरोपियन देशों की एग्री रिसर्च कंपनियों से भी जॉब व रिसर्च के ऑफर मिले थे। उन्होंने लाखों रुपए के पैकेज को छोड़कर गांव में आधुनिक तकनीक से खेती करने की राह चुनी। दोनों ने करीब 10 साल की कड़ी मेहनत से धाकड़ हाइड्रोपोनिक और धाकड़ हाईटेक नर्सरी स्थापित कर युवाओं के लिए एक मिसाल पेश की है।

जानते हैं क्या होती है हाइड्रोपोनिक तकनीक

हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती का मतलब बिना खेत और मिट्टी के की जाने वाली खेती है। इस तकनीक में पौधे को लगाने से लेकर विकास तक के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है। पीवीसी पाइप में समानांतर दूरी पर छेद कर नर्सरी में तैयार किए गए पौधे रेत, कंकड़ और नारियल की जटा में लगाए जाते हैं। इन पीवीसी पाइप में पौधों के लिए आवश्यक तत्वों और पानी के घोल को लगातार गुजारा जाता है। इस तकनीक के उपयोग से कम जगह और कम पानी का उपयोग कर ऐसी जगह पर भी खेती की जा सकती है, जहां खेती करना असंभव हो।

खेती को लाभ का धंधा बनाने वाले धाकड़ ब्रदर्स की कहानी

हाइटेक नर्सरी और फार्म बनाने वाले धाकड़ ब्रदर्स को इनोवेटिव फार्मिंग अपने पिता भेरूलाल धाकड़ से विरासत में मिली है। सरकारी नौकरी करते हुए भेरूलाल धाकड़ ने 90 के दशक में उद्यानिकी फसलों को अपने खेतों में लगाया और अंगूर, नींबू और पपीता की खेती शुरू की। अरविंद और रविंद्र धाकड़ को उनकी रुचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण करवाई, लेकिन दोनों बेटों को खेती और खेती की उन्नत तकनीक में रुचि थी। अरविंद ने बीकॉम से ग्रेजुएट होने के बाद करीब 10 साल पहले उद्यानिकी फसलों की इनोवेटिव खेती शुरू की, जिसमें स्ट्रॉबेरी, अंजीर और वीएनआर जाम की खेती कर हाईटेक नर्सरी और फार्म स्थापित किया।

छोटे भाई रविंद्र ने इस दौरान राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र पुणे और नेशनल एग्री फूड बायोटेक मोहाली में रिसर्चर के तौर पर काम किया। इसके बाद रविंद्र धाकड़ ने गांव में रहकर आधुनिक खेती को अपनाया। दोनों भाइयों ने खेती की आधुनिक तकनीक से क्षेत्र के किसानों का परिचय करवाया। रियावन की प्रसिद्ध लहसुन की खेती अफ्रीकी देश सेनेगल में भी करवाई ।

महज 4 एकड़ जमीन पर बनाया हाईटेक फार्म, अन्य राज्यों से प्रशिक्षण लेने

रियावन गांव के अरविंद और रविंद्र धाकड़ ने 4 एकड़ जमीन में ही एक हाईटेक फार्म विकसित किया है। जहां नेट हाउस, अंगूर का बगीचा, फल और सब्जियों के पौधों की नर्सरी, हाइड्रोपोनिक प्रशिक्षण केंद्र सहित फलों सब्जियों की पैकेजिंग यूनिट बनाई गई है। एक सामान्य किसान जहां 10 एकड़ जमीन में जितना उत्पादन और मुनाफा कमाता है। उससे अधिक धाकड़ ब्रदर्स आधुनिक और स्मार्ट खेती कर इस फार्म से हासिल कर रहे हैं।

हाइड्रोपोनिक तकनीक के इंस्टॉलेशन का कार्य भी अरविंद धाकड़ कर रहे हैं। इसके लिए वह देश के अलग-अलग राज्यों सहित विदेश में भी जाकर हाइड्रोपोनिक सेटअप तैयार करवा रहे हैं ।

कहां कर सकते हैं हाइड्रोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल

हाइड्रोपोनिक तकनीक से विभिन्न प्रकार की सब्जियां, फूल और बेल पर लगने वाले फल का उत्पादन किया जा सकता है, इसलिए इसका व्यावसायिक और घरेलू दोनों प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है। खासकर शहर के वह लोग जिन्हें घर की छत या बालकनी में गार्डनिंग का शौक होता है। वहीं, किचन में उपयोग होने वाली सब्जियों की खेती करने के इच्छुक लोग कम जगह में हाइड्रोपोनिक तकनीक का सेटअप लगा सकते हैं। पथरीली और बंजर जमीन पर नेट हाउस बनाकर उसमें व्यावसायिक स्तर पर भी किसान हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती कर सकते हैं। अरविंद धाकड़ बताते हैं कि भोपाल के उनके साथ ही अद्वैत शर्मा व्यावसायिक स्तर पर हाइड्रोपोनिक फार्म चला रहे हैं, जिन्होंने शहर के लोगों के लिए फार्म एक्सपीरियंस के साथ अपने हाथों से सब्जियां चुनने और खरीदने का काॅन्सेप्ट शुरू किया है, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है।

कितने खर्च में तैयार होता है हाइड्रोपोनिक सेटअप

करीब 10 सालों से हाइड्रोपोनिक तकनीक पर काम कर रहे अरविंद धाकड़ बताते हैं कि प्रगतिशील किसानों के साथ अब शहर के लोगों की रुचि हाइड्रोपोनिक खेती में बढ़ रही है। हाइड्रोपोनिक सेटअप लगाने का खर्च 150 से 200 रुपए स्क्वायर फीट तक होता है। एक बार खर्च करने के बाद हाइड्रोपोनिक तकनीक का सेटअप करीब 10 वर्षों तक काम में लाया जा सकता है। इस दौरान केवल पौधे और माइक्रोन्यूट्रिएंट का खर्च जरूर किसानों को करना पड़ता है। घरेलू उपयोग के लिए बनाए जाने वाले किचन गार्डन, बालकनी और टैरेस गार्डन करीब 15 से 20 हजार रुपए में तैयार हो जाते हैं।

बहरहाल अपने 4 एकड़ के फार्म को आधुनिक खेती के प्रशिक्षण केंद्र में बदल देने वाले अरविंद्र और रविंद्र धाकड़ सही मायने में खेती को लाभ का धंधा बना रहे हैं। खेती के आधुनिक तकनीक को अन्य किसानों तक पहुंचा कर उन्हें भी प्रगतिशील खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

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