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पांढुर्ना की महिलाओं ने बनाई बीज वाली राखी, प्यार भी बंधेगा और पेड़ भी उगेंगे

पांढुर्ना भाई-बहन के प्यार की निशानी राखियां सिर्फ कलाइयां ही नहीं सजाएंगी बल्कि ये धरती का भी श्रृंगार करेंगी. पांढुर्ना के परड़सिंगा में महिलाओं का एक समूह ऐसी राखियां तैयार कर रहा है, जिनमें सब्जियों और पेड़ों के बीज भरे गए हैं. जब ये राखियां जमीन पर गिरेगी या बोई जाएंगी, तो वे एक नए …
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पांढुर्ना
 भाई-बहन के प्यार की निशानी राखियां सिर्फ कलाइयां ही नहीं सजाएंगी बल्कि ये धरती का भी श्रृंगार करेंगी. पांढुर्ना के परड़सिंगा में महिलाओं का एक समूह ऐसी राखियां तैयार कर रहा है, जिनमें सब्जियों और पेड़ों के बीज भरे गए हैं. जब ये राखियां जमीन पर गिरेगी या बोई जाएंगी, तो वे एक नए जीवन को जन्म देंगी. इस पहल का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण करना है. 'ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट' की यह पहल भाई-बहन के रिश्ते को सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय रूप से भी समर्पित बना रही है.

बीजों से बनकर तैयार हो रहीं ऑर्गेनिक राखियां

ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट की श्वेता भटकर 11 गांव की करीब 300 महिलाओं को जोड़कर पर्यावरण को बचाने के लिए मुहिम चला रही हैं. जिसमें वे खेत में तैयार किए गए ऑर्गेनिक कपास से लेकर राखी में उपयोग आने वाली हर वस्तु को घर में ही बनाकर सुंदर राखियां तैयार कर रही हैं.

इन राखियों में अलग-अलग प्रकार के बीजों को डाला गया है, जो भाइयों की कलाइयों पर सजने के बाद यह राखियां कहीं पर भी गिरें या फिर इनका उपयोग पर्यावरण को सुंदर बनाने के लिए किया जा सकता है. क्योंकि जब राखी जमीन में जाएगी तो कोई न कोई अंकुरण आएगा. इन राखियों में सब्जियों के बीज से लेकर बड़े-बड़े पेड़ों के बीज भी डाले गए हैं.

300 महिलाएं खुद ही तैयार करती हैं बीज

श्वेता भटकर ने बताया कि "किसान के खेतों में सब कुछ पैदा होता है, लेकिन इसके बाद भी वह बाजार की वस्तुओं पर निर्भर रहता है. किसानों को खुद की चीज उपयोग करने के उद्देश्य से हमने काम शुरू किया और अब हमारे साथ 11 गांव में 300 महिलाएं जुड़ चुकी हैं, जो खुद ही पूरे साल देशी बीजों को इकट्ठा करती हैं. कई बार तो यह भी किसी काम के भी नहीं होते हैं, लेकिन राखी को सजाने के लिए काम आते हैं. इस तरह से 300 महिलाएं अपने घर बैठकर राखी बनाकर रोजगार भी पा रही हैं."

हर राखी में है एक कहानी

ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट से जुड़ी नूतन ने बताया कि "करीब 25 प्रकार के बीजों को राखी में डाल रहे हैं. इनमें से अधिकतर बीज सब्जी के हैं, जो किचन गार्डन में लगाने के काम आते हैं और एक से डेढ़ महीने में फल देने लगते हैं. जैसे कद्दू, गिलकी, बरबटी, भिंडी, लौकी. इसमें सबसे खास बात यह है कि हर राखी में जो बीज डाला हुआ है उस बीज की एक कहानी है और उसके फायदे के बारे में भी बताया गया है."

भगवान को चढ़े हुए फूलों से बनता है रंग

नूतन ने बताया कि "राखी तैयार करने के लिए रंगों की भी जरूरत होती है, लेकिन रंग भी प्राकृतिक हों इसके लिए मंदिरों में भगवान को चढ़े हुए फूलों को इकट्ठा कर उनसे प्राकृतिक कलर बनाते हैं. इसके बाद उन प्राकृतिक कलर को धागों में मिलाया जाता है, ताकि किसी तरह बाजार से कलर खरीदने की जरूरत न पड़ सके."

पैकिंग डिब्बों में भी हैं बीज

सुंदर राखियां कलाइयों के साथ ही पर्यावरण को तो सुरक्षित करती हैं. इन राखियों को जिन पैकिंग में पैक किया जाता है अधिकतर पैकेट लोग डस्टबिन में फेंक देते हैं, लेकिन इन पैकेट में भी ऐसे बीज रखे जाते हैं जिनसे पेड़ बन सके. इसलिए पैकेट भी पर्यावरण के लिए मित्र साबित होते हैं और राखी से लेकर पैकेजिंग पैकेट तक पौधों को अंकुरित करते हैं.

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