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राजस्थान में मादा चीता ‘ज्वाला’ का शिकार, टीम ने ट्रेंकुलाइज कर सुरक्षित किया

श्योपुर कूनो नेशनल पार्क की मादा चीता ज्वाला एक बार फिर सुर्खियों में आ गई, जब वह मध्य प्रदेश की सीमा पार कर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के बालेर गांव में जा पहुंची। यहां उसने एक बाड़े में बकरी का शिकार कर लिया, जिससे ग्रामीण दहशत में आ गए। सुबह करीब 7 बजे ज्वाला …
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श्योपुर
कूनो नेशनल पार्क की मादा चीता ज्वाला एक बार फिर सुर्खियों में आ गई, जब वह मध्य प्रदेश की सीमा पार कर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के बालेर गांव में जा पहुंची। यहां उसने एक बाड़े में बकरी का शिकार कर लिया, जिससे ग्रामीण दहशत में आ गए। सुबह करीब 7 बजे ज्वाला की लोकेशन ट्रैक होने पर कूनो और रणथंभौर नेशनल पार्क की टीम सक्रिय हुई। इस इलाके में बाघों की आवाजाही भी ज्यादा रहती है, जिससे वन विभाग के अधिकारी सुरक्षा को लेकर सतर्क हो गए। चीता के आक्रामक रवैये के चलते स्थानीय टीम रेस्क्यू करने में असफल रही और मदद के लिए कूनो नेशनल पार्क की टीम को बुलाया गया।
 
करीब 10 बजे कूनो की टीम मौके पर पहुंची और सीसीएफ उत्तम कुमार शर्मा की निगरानी में कई घंटों की मशक्कत के बाद ज्वाला को ट्रेंकुलाइज किया गया। इसके बाद उसे विशेष वाहन से कूनो वापस लाने की प्रक्रिया शुरू हुई। अनुमान है कि शाम 6 बजे तक वह अपने नेशनल पार्क पहुंच जाएगी।

पहले भी पवन कर चुका है राजस्थान का सफर
यह दूसरा मौका है जब कूनो का कोई चीता मध्य प्रदेश की सीमा छोड़कर राजस्थान में पहुंचा है। इससे पहले पवन नाम का चीता करौली जिले के सिमार इलाके में पहुंच गया था। उस समय भी टीम ने उसे ट्रेंकुलाइज कर वापस लाया था।

एक महीने से घूम रही है कूनो फैमिली
बताया जा रहा है कि ज्वाला पिछले एक महीने से अपने दो शावकों के साथ कूनो नेशनल पार्क से बाहर के इलाकों में घूम रही है। वह विजयपुर, सबलगढ़ और मुरैना के जोरा तक पहुंच चुकी है। इस दौरान कई बार मानव बस्तियों के पास देखी गई है।

बनेगा 17 हजार वर्ग किमी का चीता कॉरिडोर
चीता प्रोजेक्ट के तहत मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच 17,000 वर्ग किलोमीटर का चीता कॉरिडोर विकसित किया जा रहा है, जिसमें 10,500 वर्ग किमी क्षेत्र एमपी और 6,500 वर्ग किमी राजस्थान का होगा। यह कॉरिडोर कूनो नेशनल पार्क से लेकर मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व और गांधीसागर सेंचुरी तक फैला होगा। इसमें उत्तर प्रदेश के झांसी और ललितपुर का वन क्षेत्र भी शामिल किया जा सकता है। इससे चीतों को प्राकृतिक रूप से राज्यों के बीच आवाजाही का रास्ता मिलेगा।

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