मुरैना जिले के आजीविका मिशन से जुड़े कई स्व-सहायता समूह की महिलायें भी शहद उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गई है।
May 25, 2023, 22:12 IST
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मुरैना में शहद की मिठास घुल रही है। शहद उत्पादन को लेकर मुरैना एक नई पहचान बना रहा है। मुरैना जिले के आजीविका मिशन से जुड़े कई स्व-सहायता समूह की महिलायें भी शहद उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गई है। मुरैना जिला यानि खास स्वाद वाली गजक की पहचान से जाना जाता है, लेकिन समय के साथ मुरैना में शहद की मिठास भी घुल रही है। शहद उत्पादन को लेकर मुरैना एक नई पहचान बना रहा है। इसके अलावा शहद उत्पादन से कई किसान और शहद उत्पादक जुड़े, जिसमें उनके परिवार की महिलायें प्रमुख रूप से भूमिका निभा रहीं है। मुरैना में आजीविका मिशन, जिला प्रशासन और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक इसमें खास रुचि ले रहे है। जिले में लगभग 6 हजार लोग शहद उत्पादन से जुड़े हुए है। स्व-सहायता समूह से जुड़ी सैकड़ों महिलायें भी अब इस कारोबार से जुड़कर अलग-अलग राज्यों में शहद का विक्रय कर रहीं है। ग्राम धूरकुडा में मां संतोषी स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष रेखा धाकड़ कहती है कि मैंने वर्ष 2018 में समूह का गठन किया था। मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग भी ली। अभी मेरे पास 300 बॉक्स की कॉलोनी है, पिछले साल हमने 7 लाख रुपये का कारोबार किया था। पहाड़गढ़ में प्रोसेसिंग यूनिट जल्दी शुरु होना चाहिए, जिससे ज्यादा आदिवासी महिलाओं को काम मिल सके। इसी प्रकार ग्राम मिरघान के बजरंग स्व-सहायता समूह की सदस्य माया देवी कुशवाह कहती है पिछले साल मेरे पास 700 बॉक्स थे। इस बार 550 बॉक्स है, अच्छे उत्पादन के लिए आगरा जिले के जंगल में कॉलोनी लगाई है। मैं चाहती हूं कि शहद के भाव अच्छे मिले, पिछली बार 150 रुपये किलो तक शहद के भाव थे, जबकि इस बार घटकर 70 रूपये किलो के आसपास आ गये है। जिले में एसएचजी की महिलाओं ने इसे खास कारोबार बना लिया है। अभी यहां रिकॉर्ड 35 हजार क्विंटल शहद का उत्पादन मधुमक्खी पालकों ने कर लिया है। एक लाख कॉलोनी (बॉक्स का समूह जिसमें मधु मक्खी रहती हैं) में यह उत्पादन लिया जा रहा है। आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक श्री दिनेश सिंह तोमर ने बताया कि महिलाओं ने शहद उत्पादन में खास रुचि दिखाई है। लगभग 500 महिलायें सीधे तौर पर जुड़ीं हैं, जबकि सैकड़ों महिलायें परिवार के साथ भी इस व्यवसाय से जुड़ गई है। महिलाओं ने कई टन शहद का उत्पादन कर रिकॉर्ड बनाया है। जिले के पहाड़गढ़ में प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई है। जिले में सरसों बरशिन (मवेशियों का चारा), धनिया, अजवाईन आदि का उत्पादन अधिक होने से फ्लॉवरिंग वातावरण मिल जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र के सीनियर कीट वैज्ञानिक और हनी बी विशेषज्ञ डॉ. योगेश यादव ने बताया कि मुरैना में शहद उत्पादन को लेकर मधुमक्खियों को अनुकूल माहौल मिलता है। मुझे ख़ुशी है कि छह हजार से ज्यादा लोग खास कर महिलायें भी शहद उत्पादन से जुड़ी हुई है। यहां लगातार उत्पादन बढ़ रहा है। इसकी शुद्धता बढ़ाने के लिए जिले में तीन प्रोसेसिंग यूनिट लगाई है। यह प्लांट जौरा में दो और पहाड़गढ़ में एक है। सरसों फ्लॉवरिंग अधिक होने से यह ख़ास पसंद बनी हुई है। मुरैना में ही एक लाख 70 हजार हैक्टेयर में सरसों की फसल लगाई जाती है। एक बॉक्स में रानी और 300 नर मधुमक्खी के अलावा लगभग 60 हजार श्रमिक मधु मक्खियां रहती हैं, जो फूलों का रस इकठ्ठा करती है। मधुमक्खी पालन को लेकर कई सावधानी रखना होती है। इसकी खास ट्रेनिंग के बाद ही बॉक्स दिए जाते हैं। वैज्ञानिक श्री अशोक यादव ने बताया कि हमें भ्रम होता है, कि शहद जम जाने का मतलब अशुद्ध है। शहद का प्रकृतिक नेचर है जमना। इसमें नेचुरल ग्लूकोज़ की मात्रा ज्यादा होती है। प्रोसेसिंग यूनिट से शहद का मॉइश्चर और अशुद्धि भी हट जाती है। जिले में जिला प्रशासन भी महिलाओं को इस कारोबार से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. इच्छित गढ़पाले ने बताया कि जिले में मधु मक्खी पालन और कारोबार में महिलाओं को अधिक से अधिक जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मुरैना जिला शहद उत्पादन को लेकर नई पहचान बना चुका है। अच्छे भाव मिले यह भी कोशिश की जा रही है। इस बार शहद उत्पादन अधिक होने और भाव काम मिलने की वजह से उत्पादकों ने स्टॉक अपने पास ही रख लिया है। समूह की महिलाओं के अलावा किसानों की मांग है कि शहद के अच्छे भाव दिलवाने के लिए सरकार प्रयास करे। ग्वालियर-चंबल संभाग के कमिश्रर श्री दीपक सिंह ने बताया कि मुरैना के किसानों खास कर स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने शहद उत्पादन में नया मुकाम हासिल किया है। विशेषज्ञों से और ट्रेनिंग दिलवाई जायेगी, आने वाले दिनों में कई देशों में शहद का एक्सपोर्ट देखने को मिलेगा।