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अखलाक लिंचिंग केस में यूपी सरकार को बड़ा झटका, कोर्ट ने केस वापसी की अर्जी ठुकराई

नई दिल्ली ग्रेटर नोएडा के बिसाहाड़ा के चर्चित अखलाक मॉब लिंचिंग मामले में सूरजपुर कोर्ट ने सोमवार को आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने की राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी। इस अपील के जरिए उत्तर प्रदेश सरकार ने केस वापस लेने की इजाजत मांगी थी। सूरजपुर जिला अदालत के इस फैसले से उत्तर …
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नई दिल्ली 
ग्रेटर नोएडा के बिसाहाड़ा के चर्चित अखलाक मॉब लिंचिंग मामले में सूरजपुर कोर्ट ने सोमवार को आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने की राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी। इस अपील के जरिए उत्तर प्रदेश सरकार ने केस वापस लेने की इजाजत मांगी थी। सूरजपुर जिला अदालत के इस फैसले से उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका लगा है।
 
सुनवाई के दौरान अदालत ने यूपी सरकार की दलीलों को अपर्याप्त और आधारहीन करार दिया। अदालत ने कहा कि केस वापस लेने का कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है। फैसले से आरोपियों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई जारी रहने का रास्ता साफ हो गया है। फैसले ने मामले को बंद करने की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। बता दें कि 10 साल पहले दिल्ली से 50 किलोमीटर दूर दादरी के बिसाड़ा गांव में एक अफवाह के तहत भीड़ ने 50 साल के मोहम्मद अखलाक को कथित तौर पर पीट-पीटकर मार डाला था। भीड़ का आरोप था कि अखलाक के परिवार ने बछड़े का मांस खाया है। भीड़ का यह भी कहना था कि अखलाक ने घर में गोमांस रखा है।

इसके बाद गांव के लोगों ने पीट-पीटकर अखलाक की हत्या कर दी थी। 28 सितंबर 2015 को हुई इस घटना की चर्चा देशभर में हुई थी। इस घटना की जमकर आलोचना हुई थी। पुलिस ने जांच के बाद कुल 19 लोगों को इस मामले में आरोपी बनाया था। सभी पर हत्या, दंगा भड़काने और जान से मारने की धमकी देने जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया था।

कानूनी लड़ाई के बीच अक्टूबर 2025 में उत्तर प्रदेश शासन ने अचानक एक बड़ा कदम उठाते हुए आरोपियों के खिलाफ चल रहे आरोपों को वापस लेने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया था। उत्तर प्रदेश शासन की ओर से अदालत से केस चार्जशीट में नामजद सभी 19 लोगों के खिलाफ आरोप वापस लेने की इजाजत मांगे जाने के कारण यह केस एकबार फिर सुर्खियों में आ गया था।

इस याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। अभियोजन पक्ष की दलीलें थी कि केस वापस लिया जाना चाहिए। हालांकि अदालत दलीलों से सहमत नहीं हुई। अदालत ने कहा कि अपील का कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है। कोर्ट ने अर्जी को महत्वहीन मानते हुए इसे खारिज कर दिया।

 

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